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भगवान के सन्मुख धरना । नैवेद्य, आरती आदि आगममें भी कहा है | आवश्यक नियुक्ति में कहा है कि- 'कीरह बली ' यानें "बलि करी जाती है." इत्यादि, निशीथ में भी कहा है किउसके अनन्तर प्रभावती रानीने वलिआदि सर्व करके कहा कि "देवाधिदेव वर्द्धमानस्वामी की प्रतिमा हो तो प्रकट होओ. " ऐसा कहकर ( पेटी ऊपर ) कुल्हाडा पटका। जिसमें ( पेटीके) दो भाग हुए और उसके अन्दर सर्व अलंकारोंसे सुशोभित भगवन्तकी प्रतिमा देखने में आई । निशीथपीठिका भी कहा है कि बलि अर्थात् उपद्रव शमनके हेतु क्रूर ( अन्न ) किया जाता है । निशीथचूर्णिने भी कहा है कि- संप्रति राजा रथयात्रा करनेसे पहिले विविध प्रकार के फल, मिठाई, शालि, दालि, कोडा, वस्त्र आदि भेंट करे । कल्प में भी कहा है किसाहम्मिओ न सत्था, तस्स कयं तेण कपइणं ।
तरस कहा का अजीवत्ता ? ॥ १ ॥
कए,
जं पुण परिमाण तीर्थंकर भगवान् लिंगसे साधर्मिक नहीं है इससे उनके लिये किया हुआ साधु सक्ते हैं तो पीछे अजीव प्रतिमाके लिए जो किया गया है वह लेनेमें क्या हरज हैं ? इससे जिने - वरका बली पका हुआ ही समजना.
श्रीपादलिप्तसूरिने प्रतिष्ठाप्राभृत से उद्धृत ऐसी प्रतिष्ठापद्धति में कहा है कि- "आगममें कहा है कि, आरती उतार, मंगलदीप कर, पश्चात् चार स्त्रियोंने मिलकर निम्मंछण गीतगान