________________
( २४३ )
" ईशान कोण में देवमंदिर करना । " ऐसा विवेकविलास में कहा है | वैसे ही विषम आसन पर बैठ कर, पग पर 1 पग चढाकर, खडे पगसे बैठकर अथवा बायां पग ऊंचा रख कर पूजा करना नहीं । तथा बायें हाथसे भी पूजा न करना । सूखे भूमिपर पडे हुए, सडी हुई पखडीवाले, नीचलोगों के स्पर्श किये हुए, खराब व बिना खिले हुए, कीडीसे खाये हुए बालसे भरे हुए, सडे हुए, बासी, मकड़ी के जालेवाले, दुर्गन्धित, सुगंध रहित, खट्टी गंधके, *मलमूत्र के संपर्कसे अपवित्र हुए ऐसे फूल पूजामें न लेना ।
सविस्तार पूजा करने के समय, प्रतिदिन तथा विशेषकर पर्वके दिन तीन, पांच अथवा सात पुष्पांजली चढाकर भगचानको स्नात्र करना । उसकी विधि इस प्रकार है: - प्रभातसमय प्रथम निर्माल्य उतारना, प्रक्षालन करना, संक्षेप से पूजा आरती, और मंगल दीप करना । पश्चात् स्नात्र आदि सविस्तार अन्य पूजा करना । पूजाके आरंभ में प्रथम भगवानके सन्मुख - कुंकुमजलसे भरा हुआ कलश स्थापन करना। पश्चात् --- मुक्तालंकार विकारसारसौम्यत्व क्रांतिकमनीयम् । सहजनिजरूपनिर्जितजगत्रयं पातु जिनबिम्बम् ॥ १ ॥ यह मंत्र कह कर अलंकार उतारना ।
* बडी नीति लघुनीति करते समय पास में रखे
हुए ।
भूत
१ अलंकार के सम्बंध रहित और क्रोधा िक रहित परंतु सारसौम्यकांतिसे रमणीय और अपने स्वाभाविक सुंदररूपसे जगजयको जीतनेवाला जिनबिंब तुम्हारी रक्षा करे ।
: