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महसूल) छुडाया आदि बातें अभीतक लोकमें प्रचलित हैं। यह जिणहाका प्रबंध हुआ।
मूलनायकजीकी सविस्तार पूजा कर लेने के बाद क्रमशः सामग्रीके अनुसार सब जिनबिम्बकी पूजा करना । द्वारपरके समवसरणके जिनविम्बकी पूजा भी गभारेमें से बाहिर निकलते समय करना उचित है, परन्तु प्रथम नहीं. कारण कि, मूल. नायकजी ही की प्रथम पूजा करना उचित है । द्वारपरका बिम्ब द्वारमें प्रवेश करते समय प्रथम पास आता है, इससे उसकी प्रथम पूजा करना, ऐसा जो कदापि कहें तो बडे जिनमंदिरमें प्रवेश करते तो बहुतसे जिनविम्ब प्रथम आते हैं, जिससे उनकी भी प्रथम पूजा करने का प्रसंग आवे, और वैसा किया जाय तो पूष्पादिक सामग्री थोडी हो तो मूलनायकजी तक पहुंचते सामग्री पूरी होजानेसे मूलनायकजीकी पूजा भी न होसके । वैसे ही श्रीसिद्धाचलजी, गिरनार आदि तीथों में प्रवेश करते मार्गमें समीप बहुतसे चैत्य आते हैं, उनके अंदर रही हुई प्रतिमाओंका प्रथम पूजन करे तो अंतिम किनारे मूलनायकजीके मंदिरमें जाना होसके, यह बात योग्य नहीं । अगर यह योग्य भी माने तो उपाश्रयमें प्रवेश करते गुरुको वंदन करनेके पहिले समीपस्थ साधुओंको प्रथम वंदना करनेका प्रसंग आता है । समीपस्थप्रतिमाओंको मूलनायकजीकी पूजा करनेसे पहिले मात्र प्रणाम करना योग्य है। संघाचारमें तीसरे उपांगको मिलती विजय