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चितपनका प्रसंग आता है। यहां जिणहा श्रेष्ठका दृष्टान्त कहते हैंधोलका नगर में जिणहा नामक अतिदरिद्री श्रेष्ठी रहता था । वह घीके मटके, कपासकी गांठे आदि बोझ उठाकर अपना निर्वाह करता था । भक्तामरप्रमुखस्तोत्र के स्मरणसे प्रसन्न हुई चक्रे - वरीदेवीने उसको एक वशीकरण रत्न दिया । उस रत्नके प्रभावसे जिणहाने मार्गमें रहने वाले तीन प्रसिद्ध दृष्टचोरोंको मार डाला । वह आश्चर्यकारी वृत्तान्त सुन पाटणके भीमदेवराजाने आदर सहित उसे बुलाकर देशकी रक्षा के लिये एक खड़ग दिया, तब शत्रुशल्य नामक सेनापतिने डाहवश कहा किवांडो तासु समप्पिइ, जसु खांडे अभ्यास । जिणहा इक्कुं समप्पिइ, तुल चेलउ कप्पास ॥ १ ॥ खड़ग उसीको देना चाहिये कि जिसे उसका अभ्यास होवे । जिणहाको तो घी तेलके मटके वस्त्र और कपास ये ही देना चाहिये १। यह सुन जिणहाने उत्तर दिया कि
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असिधर धणुधर कुंतधर, सत्तिघरा अ बहु य । सत्तुसल रणि जे शूर नर, जणणी ति विरल पसूअ ||२|| अश्वः शस्त्रे शास्त्रं वाणी वीणा नरश्च नारी च | पुरुषविशेषं प्राप्ता भवन्त्ययोग्यच योग्याश्च ॥ २ । तलवार, धनुष्य और भालेको पकडनेवाली तो संसारमें बहुत व्यक्ति हैं, परन्तु शत्रुओं के शल्यरूप ऐसे हे सेनानि रणभूमिमें शूरवीर पुरुषों को प्रसव करनेवाली तो कोई कोई ही माता होती है ।