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के दर्शनसे, कोई २ प्रशान्त जिनविम्ब देखनेसे, कोई २ पूजाका अतिशय देखनेसे और कोई २ जीव जिनेश्वर महाराजके दर्शन हेतु आए हुए मुनि महाराजके उपदेशसे प्रतिबोधको प्राप्त होते हैं । अतः बडे मंदिर व घरदेरासर तथा उनमेंकी सर्व प्रतिमाएं तथा विशेष कर मूलनायकजीकी प्रतिमा ये सब अपने सामर्थ्य, देश तथा काल इनके अनुसार सर्वोत्कृष्ट बनवाना । घरदेरासर तो पीतल, तांबा आदि धातुका अभी भी बन सकनेके योग्य है । धातुका करानेकी शक्ति न हो तो हस्तिदन्त आदि वस्तुका करवाना, अथवा हस्तीदन्तकी भमरीआदिकी रचनासे शोभित पीतलकी पट्टीसे व हिंगूलक रंगसे सुन्दर देखाव वाला तथा श्रेष्ठ चित्रकारीसे रमणीय ऐसा काष्ठादिकका घरदेरासर करवाना । बडे जिनमंदिरमें तथा घरदेरासरमें भी प्रतिदिन चारों तरफसे पूंजना, वैसे ही बांधकाममें आई हुई लकडियां उज्वल करनेके हेतु उन पर तैल लगाना, दीवारें चूनेसे पोतना, जिनेश्वर भगवानका चरित्र दिखावे ऐसी चित्रकारी करना, पूजाकी समस्त सामग्री बराबर संचित कर रखना, पडदे तथा चन्दुए बांधना आदि मंदिरके काम इस प्रकार करना कि जिससे मंदिर तथा प्रतिमाकी विशेष शोभा बढे । घरदेरासरके ऊपर धोतियां, पछेडी आदि वस्तुएं भी न डालना, कारण कि, बडे चैत्यकी भांति उसकी (घर देरासरकी ) भी चौरासी आशातना टालना आवश्यकीय है।