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जो अपवित्र पुरुष संसार में पडनेका भय न रखते देवपूजा करते हैं, और जो पुरुष भूमि पर पडे हुए फूलसे पूजा करते हैं. वे दोनों चांडाल होते हैं, यथा:
अपवित्रता से पूजन में दोष दिखानेवाला चांडाल दृष्टांत.
कामरूप नगर में एक चांडालको पुत्र हुआ । जन्म से ही उसके पूर्वभव के बैरी किसी व्यंतरदेवताने उसे हरण कर जंगल में डाल दिया । इतने में कामरूपनगरका राजा जो कि शिकार खेलने गया था उसने वनमें उस बालकको देखा । राजा पुत्रहीन था इससे उसने उसे ले लिया, पालन किया तथा उसका पुण्यसार नाम रखा। जब पुण्यसार तरुणावस्थाको प्राप्त हुआ तब राजाने उसको राज्याभिषेक कर स्वयं दीक्षा ले ली । कुछ कालके अनन्तर उक्त कामरूपके राजा केवली होकर वहां आये । पुण्यसार उनको वंदना करने गया । सर्व नगरवासी मनुष्य भी वन्दना करने आये तथा पुण्यसारकी माता वह चांडालिनी भी वहां आई । पुण्यसार राजाको देख उस चांडालिनी के स्तनमें से दूध झरने लगा । तब राजा ( पुण्यसार ) ने केवली भगवान से इसका कारण पूछा । केवलीने कहा- "हे राजन् ! यह तेरी माता है, तू वनमें पडा हुआ मेरे हाथ लगा." पुण्यसारने पुनः प्रश्न किया. ' हे भगवान् ! मैं किस कर्मवश चांडाल हुआ ?" कवलीने उत्तर दिया- " पूर्वभव में तू व्यवहारी था । एक समय भगवानकी पूजा करते " भूमिपर पडा हुआ फूल नहीं चढ़ाना
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