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जो राजा प्रमुख भारी ऋद्धिशाली पुरुष होवे तो "सर्व ऋद्धिसे, सर्व दीप्तिसे, सर्व द्युति से, सर्व बलसे, सर्व पराक्रम से " इत्यादि आगमवचन है, इससे वह पुरुष जिनशासनकी प्रभावनाके निमित्त सर्वोत्कृष्ट ऋद्धिसे दशार्णभद्र राजाकी भांति जिनमंदिरको जावे ।
सर्व ऋद्धिसे जिनवन्दनमें दशार्णभद्रका दृष्टान्त.
जैसे दशार्णभद्र राजा " पूर्वमें किसीने वन्दन न किया ऐसी उच्च ऋद्धिसे मैं वीरभगवानको वन्दना करूं " ऐसे अहंकार से सर्वोपरि ऋद्धि सजा कर अपने अंतःपुरकी स्त्रियोंको सर्वांग में शृंगार पहिरा, उत्तम हाथी, घोडे, रथ, आदि चतुरंग सेना साथ में ले हाथीदांत की, चांदीकी तथा सोनेकी पांचसौ पालकियों में बिठा श्रीवीर भगवानको वन्दना करने आया । उसका मद दूर करनेके हेतु सौधर्मेन्द्रन श्रीवीर भगवानको वंदना करनेको आते हुए दिव्यऋद्धिकी रचना करी । बृहत्ऋषिमंडलस्तव में कहा है कि चौंसठ हजार हाथी, प्रत्येक हाथी को पांचसौ बारह मुख, प्रत्येक मुखमें आठ दांत, प्रत्येक दांत में आठ बावडियां, प्रत्येक बावडी में लक्ष पखडीके आठ कमल, प्रत्येक पखडी ऊपर बत्तीसबद्ध दिव्यनाटक, प्रत्येक कर्णिका में एक एक दिव्य प्रासाद, और प्रत्येक प्रासाद में अग्रमहिषीकी साथ इन्द्र श्रीवीर भगवानके गुण गाता है । ऐसी ऋद्धिसे ऐरावत हाथी ऊपर बैठकर आते हुए इन्द्रको देखकर जिसकी