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पैर आगे रख कर दाहिनी ओर यतनासे प्रवेश करे, और स्त्री वाम पग आगे धरकर बाईं ओर प्रवेश करे । पूर्व अथवा उत्तरदिशाको मुख करके वाम नाडी चलते मौन कर सुगंधित और मधुर द्रव्यसे भगवान की पूजा करना चाहिये । इत्यादि वचनसे कहे अनुसार निर्साही कर, तीन प्रदक्षिणा करना तथा अन्य भी विधि सम्पूर्ण कर पवित्र पाटले आदि आसन पर पद्मासनादिक सुखकारक आसन से बैठना । पश्चात् चन्दनके पात्र में से थोडा चन्दन अन्यपात्र में अथवा हाथ पर ले ललाट ( कपाल ) पर तिलक कर तथा हाथको स्वर्णकंकण और चंदनका लेप कर तथा धूप दे दोनों हाथोंसे जिनेश्वर भगवानकी अग्रपूजा, अंगपूजा तथा भावपूजा करना चाहिये । तत्पश्चात् पूर्वमें किया हुआ अथवा न किया हुआ पच्चखान भगवान के सन्मुख उच्चारना |
( मूल गाथा )
विहिणा जिणं जिणगिहै, गंतु अच्चेइ उचिअर्चितरओ ॥
उच्चरह पच्चखाणं,
दढपंचाचारगुरुपासे ॥ ६ ॥ भावार्थ:- उपरोक्त गाथा में “ विधिना " ( विधि से ) यह पद है, उसे सब जगह मिलाना । यथा— पश्चात् विधिसे जिनमंदिरको जा, विधि से उचित चिन्ता ( विचार ) करता हुआ, विधि से भगवानकी पूजा करे । वह विधि इस प्रकार है: