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उसकी पासकी अनामिका अंगुलीके बीच में लेकर दातन करना। उस समय दाहिनी अथवा डाबी दाढके नीचे घिसना, दांतके मसूडोंको कष्ट न देना । स्वस्थ होकर घिसने ही में मन रखना। उत्तर अथवा पूर्व दिशाकी ओर मुख करके बैठना, बैठनेका आसन स्थिर रखना, और घिसते समय मौन रहना । दुर्गंध युक्त, पोला सूखा मीठा, खट्टा और खाटा ऐसा दातन त्यागना। व्यतिपात, रविवार, सूर्यसंक्रान्ति, चन्द्र सूर्यका ग्रहण, नवमी, अष्टमी, पडवा, चौदश, पूर्णिमा और अमावस्या इन छः दिनों में दातन नहीं करना । दातन न मिले तो बारह कुल्ले करके मुख शुद्धि करना, और जीभके ऊपरका मल तो नित्य उतारना । जीभ साफ करनेकी पट्टीसे अथवा दातनकी फाडसे धीरे २ जीभ घिसकर दातन फेंक देना। दातन अपने सन्मुख अथवा शान्त दिशामें पडे किंवा ऊंचा रहे तो सुखके हेतु जानना, और इससे विपरीत किसी प्रकार पडे तो दुखदायी समझना । क्षणमात्र ऊंचा रहकर जो पडजावे तो, उस दिन मिष्ठान्नका लाभ मिलता है, ऐसा शास्त्रज्ञ मनुष्य कहते हैं । खांसी, श्वास, ज्वर, अजीर्ण, शोक, तृषा (प्यास ), मुखपाक ( मुंह आना । ये जिसको हुए हों अथवा जिसको शिर, नेत्र, हृदय और कानका रोग हुआ हो, उस मनुष्यने दातन नहीं करना ।
पश्चात् स्थिर रह कर नित्य केश (बाल ) समारना. अपने सिरके बाल स्वयं समकालमें दोनों हाथोंसे नहीं समारे । तिलक