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आदि वस्तुके प्रमाणका तथा आरम्भका निश्चय आदि कर यथाशक्ति नियम ग्रहण करना चाहिये ।।
__ पच्चक्खान लेने की विधेि. इस प्रकारसे नियम लेनेके अनन्तर यथाशक्ति पच्चक्खान करना । उसमें नवकारसी, पोरसी आदि कालपच्चक्खान, जो सूर्योदयके पहिले किया होय, तो शुद्ध होता है, अन्यथा नहीं। शेष पच्चखान तो सूर्योदयके अनन्तर भी किये जाते हैं। नवकारसी पच्चखान जो सूर्योदयके पहिले किया होवे तो उसके पूर्ण होने पर भी अपनी २ कालमर्यादामें पोरसी आदि सब कालपच्चखान किये जा सकते हैं। नवकारसी पच्चखान पहिले नहीं किया होवे, तो सूर्योदय होने के बाद दुसरे कालपच्चखान शुद्ध नहीं होते । जो सूर्योदयके पूर्व नवकारसी पच्चखान बिना पोरसी आदि पच्चखान किया होवे तो, वह पूरा होनेके अनंतर दुसरा कालपच्चखान शुद्ध नहीं होता,परन्तु सूर्योदयके पूर्व किये हुए पच्चखानके पूर्ण होनेके पहिले दूसरा कालपच्चखान ले तो शुद्ध होता है। ऐसा वृद्ध पुरुषोंका व्यवहार है । नवकारसी पच्चखानका दो घडी वक्त है, इतना समय उसके थोडे आगार ऊपरसे ही प्रकट ज्ञात होता है । नवकारसी पच्चखान करनेके अनन्तर दो घडी उपरान्त भी नवकारका पाठ किये विना भोजन करे तो पच्चखानका भंग होजाता है, कारण कि, पच्चक्खान दंडकमें "नमुक्कारसहिअं" ऐसा कहा है ।