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रागादिमय कुस्वप्न, द्वेषादिमय दुःस्वप्न तथा बुरे फलका देनेवाला स्वप्न इन तीनों में से पहिले के परिहारके निमित्त एक सौ आठ श्वासोश्वासका काउस्सग्ग करना । प्रतिक्रमण विधि आगे वर्णन करेंगे । व्यवहारभाष्य में कहा है कि-प्राणातिपात ( हिंसा ), मृषावाद ( असत्य वचन ), अदतादान (चोरी), मैथुन (स्त्रीसंभोग) तथा परिग्रह (धनधान्यादिकका संग्रह ) ये पांचों स्वप्न में स्वयं किये, कराये अथवा अनुमोदन किया होवे तो पूरे सौ श्वासोश्वासका काऊसग्ग करना। मैथुन ( स्त्रीसंभोग) स्वयं किया होवे तो सत्ताइस श्लोक ( एकसौ आठ श्वासोश्वास ) का काउस्सग्ग करना | काउसरगमें पच्चीस श्वासोश्वास प्रमाणवाला लोगस्स चार बार गिनना अथवा पच्चीसश्लोक प्रमाणवाले दशवैकालिकसूत्र के चौथे अध्ययन में किये हुए पंचमहाव्रतका चिन्तवन करना अथवा स्वाध्यायके रूपमें चाहे कोई पच्चीस श्लोक गिनना । इस भांति व्यवहारभाष्यकी वृत्ति में कहा है । प्रथम पंचाशककी वृत्ति में भी कहा है कि - किसी समय मोहिनीकर्म के उदयसे स्त्रीसेवारूप कुस्वप्न आवे तो उसी समय उठकर ईव - हिपूर्वक प्रतिक्रमण कर एक सो आठ श्वासोश्वासका कास्सरग
१ स्वप्नमें स्त्रीको भोगना अथवा अन्य कोई कामचेष्टा करना उसे शास्त्र स्वप्न कहते हैं । २ स्वप्न में किसीके साथ वैर मत्सर करना अथवा किसी भी प्रकार द्वेषदिक प्रकट करना उसे दुःस्वप्न कहते हैं