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पुरुषने प्रातःकालमें प्रथम अपना दाहिना हाथ देखना थता स्त्रीने बांया हाथ देखना। क्योंकि वह अपना पुण्य प्रकट बतलाता है। जो मनुष्य मातापिता इत्यादि वृद्धपुरुषोंको नमस्कार करता है उसे तर्थियात्राका फल प्राप्त होता है। इसलिये उनकों नित्य नमस्कार करना चाहिये । जो मनुष्य वृद्धपुरुषोंकी सेवा नहीं करते उनसे धर्म दूर रहता है और जो मनुष्य राजा महाराजादिकी सेवा नहीं करते हैं उनसे लक्ष्मी दूर रहती है,
और जो मनुष्य वेश्याके साथ मित्रता नहीं रखते उनसे विषयवासनाकी तृप्नि दूर रहती है।
रात्रि प्रतिक्रमण करनेवालेने पच्चखानका उच्चारण करनेसे पहिले सचित्तादि चौदह नियम लेना चाहिये । प्रतिक्रमण न करे उसने भी सूर्योदयसे पहिले चौदह नियम ग्रहण करना, शक्तिके अनुसार नौकारसी, गठिसहिअ, बियासन, एकासन इत्यादिक पच्चखान करना । तथा सचित्त द्रव्यका और विगय आदिका जो नियम रखा हो, उसमें संक्षेप करके देशावकाशिक व्रत करना, विवेकी पुरुषने प्रथम सद्गुरुके पास यथाशक्ति
१ यहां वेश्याके साथ मित्रता करनेको कहा है, वह विषयलंपटतासे नहीं समझना, बल्कि विषयका तुच्छ स्वरूप जाननेके हेतु वेश्याके साथ मित्रता रखना । ऐसा करनेसे वहांके कृत्य देखकर विषय ऊपर वैराग्य बुद्धि होती है । स्वप्नचिन्तामणिके मतसे वापनाके लिये भी होवे तब भी वह जैनको अनादरणीय ही है.