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शंकाः-शस्त्रका सम्बन्ध न होते केवल सौ योजन पर जाने ही से लवणादिक, वस्तु अचित्त किस प्रकार होजाती है ?
समाधान-जो वस्तु जिस देशमें उत्पन्न होती है उसको वह देश, वहांका जल वायु आदि अनुकूल रहते हैं. उसी वस्तुको वहांसे परदेश लेजावे तो उसको पूर्व उस देशमें जलवायु आदिका जो पौष्टिक आहार मिलता था, उसका विच्छेद होनेसे वह वस्तु अचित्त होजाती है । एकपात्रसे दूसरे पात्रमें अथवा एक कोठेमें से दूसरे कोठेमें इस तरह बारम्बार फिरानेसे लवणादि वस्तु अचित्त होजाती है । वैसेही पवनमे, अग्निसे तथा रसोई आदिके स्थानमें धुआं लगनेसे भी लवणादि वस्तु अचित्त होजाती हैं. "लवणादि" इस पदमें "आदि" शब्द ग्रहण किया है इससे हरताल, मनशिल, पीपल, खजूर, दाख, हरडा यह वस्तुएं भी सौ योजन ऊपर जानेसे अचित्त होजाती हैं, ऐसा समझना चाहिये । पर इसमें कितनेक आचीर्ण ( वापरने योग्य ) और कितनेक अनाचीण (न वापरने योग्य) हैं। पीपल, हरडा इत्यादि आचीण हैं तथा खजूर दाख आदि अनाचीण हैं।
अब सब वस्तुओं के परिणाम होनेका साधारण (जो वस्तु साधारणको लागू पडे) कारण कहते हैं- गाडीमें अथवा बैलआदिकी पाठपर बारम्बार चढाने उतारनेसे, गाडीमें अथवा बैलपर लादे हुए लवणादि वस्तुके बोझमें मनुष्यके बैठनेस, बैल तथा मनुष्यके शरीरकी उष्णता लगनेसे, जिस वस्तुका जो