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त्रिदंडीका सुवर्णपुरुष (सोना पुरुष) होगया। उससे अत्यन्त ऋद्धिशाली होकर शिवकुमारने इस लोकमें जिनमंदिरादि बंधाये ।
परलोकके सम्बन्धमें बडमें रहनेवाली शवलिकादि दृष्टांत जानों, जैसेः-वह (बटशवलिका) जब यवनके बाणसे विद्ध हुई तब उसको मुनिराजने नवकारमंत्र दिया। जिससे वह सिंहलाधिपति राजाकी मान्य पुत्री हुई । एक समय किसी श्रेष्ठि ( सेठ ) ने छींक आते अपने आप ही नवकारका प्रथम पद कहा । वह सुननेसे राजकन्याको जातिस्मरणज्ञान उत्पन्न हुआ। जिससे उसने पचास नौका द्रव्यसे भरी हुई साथ ले भृगुकच्छमें आ कर शबलिकाविहारका उद्धार कराया।
इसलिये निद्रासे जागते ही प्रथम नवकारमंत्रकी गणना करना पश्चात् धर्मजागरिका करना । वह इस प्रकार है--
"कोऽहं? का मम जाई? किं च कुलं? देवया च? के गुरुणो? ।
को मह धम्मो? के वा, अभिग्गहा? का अवस्था मे? ॥ १ ॥ कि में कडं? किंच मे किच्चसेसं?, कि सकणिज्जं न समायरामि? । किं मे परो पासइ? किं च अप्पा?, किं वाहं खलिअंन विवज्जयामि?।।२।।
मैं कौन हूं ? मेरी जाति क्या है ? कुल क्या है ? देव कौन ? गुरु कौन ? धर्म कौनसा ? अभिग्रह कौनसा ? और अवस्था कैसी? मैंने अपना कौन कर्त्तव्य किया? और मेरा कौन कार्य शेष है? करनेकी शक्ति होते हुए मैं (प्रमादसे) करता नहीं ऐसा क्या है ? दूसरे मनुष्य मेरी ओर किस दृष्टि से देखते हैं ?