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समाधिमें रहे, वैसे ही ध्यान करनेका प्रयत्न करना। नवकार मंत्र इस लोक में तथा परलोक में अति ही गुणकारी है । महानिशीथसूत्रमें कहा है कि
GORENCIO
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" नासेइ चोरसावयविसहजलजलणबंधणभयाई । चिंतितो रक्खसर रायभयाइं भावेण ॥ १ ॥ अन्यत्रापि जाएव जो पढिज्जइ, जेणं जायस्स होइ फलरिद्धी । अवसाणेवि पढिज्जइ, जेण मओ सुग्ाई जाइ ॥ १ ॥ आइ पि पढिज्जइ, जेण य लंघेइ आवइसयाई । रिद्धएिवि पढिज्जइ, जेण य सा जाइ वित्थारं ॥ २ ॥ नवकारइक्क अक्खर, पावं फेडेइ सत्त अथराणं । पन्नासं च पएणं, पंचसयाई समग्गेणं ॥ ३ ॥ जो गुणइ लक्खमेगं, पूएइ विहीइ जिणनमुक्कारं । तित्थयर नामगोअं, सो बंधइ नत्थि संदेहो ॥ ४ ॥ अब य अट्ठ सया असहस्सं च अट्ठ कोडीओ । जो गुण अट्ठ लक्खे, सोत अभवे लहड़ सिद्धिं ॥ ५ ॥ नवकार मंत्रका भावसे चितवन किया होवे तो वह चोर, श्वापद ( जंगली जानवर ), सर्प, जल, अग्नि, बंधन, राक्षस, संग्राम तथा राजा इतने द्वारा उत्पन्न हुए भयका नाश करता है । अन्यस्थान में भी कहा है कि, जीवके जन्मसमय में भी नवकार गिनना, कारण कि उससे उत्पन्न होनेवाले चालकजीवको उत्तमफलकी प्राप्ति होती है। देहांत के समय में
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