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भी नवकार गिनना, कारण कि, उससे मरनेवाला जीव सुगतिको जाता है। आपत्ति के समय भी नवकार गिनना, कारण कि इससे सैंकडों आपत्तियों का नाश होता है । बहुतसी ऋद्धि हो तो भी गिनना, कारण कि इससे ऋद्धिकी वृद्धि होती है । नवकारका एक अक्षर गिने तो सात सागरोपमकी स्थिति वाला, एक पद गिने तो पचास सागरोपमकी स्थितिवाला और समग्र नवकार गिने तो पांचसौ सागरोपम स्थितिवाला पापकर्म नाशको प्राप्त होता है । जो मनुष्य एक लक्ष नवकार गिने और विधिपूर्वक जिननमस्कार की पूजा करे वह तीर्थंकर नामगोत्र संचित करे इसमें संशय नहीं । जो जीव आठ करोड, आठ लाख आठ हजार, आठ सो आठ (८०८०८८०८) बार नवकार मंत्र गिने वह तीसरे भवमें मुक्ति पाता है । नवकार माहात्म्य के ऊपर इसलोकसंबंध में श्रेष्ठिपुत्र शिवकुमारादिकका दृष्टांत है, श्रेष्ठपुत्र शिवकुमार जुआआदि व्यसनमें आसक्त होनेसे उसके पिताने उसे शिक्षा दी कि, कोई संकट आ पडे तो नवकार मंत्रकी गणना करना । कुछ कालमें पिताके मरजाने के बाद व्यसनसे निर्धन हुआ शिवकुमार धनके निमित्त किसी त्रिदंडीके कहने से उत्तर साधक हुआ । कृष्ण चतुर्दशीकी रात्रिमें स्मशान में मृतकलेवर के पांव छुते भयभीत हुआ, जिससे उसने उसी समय तीन बार नवकार मंत्र की गणना की। उससे खडे हुए शवकी 16 उस पर नहीं चली तब शवने त्रिदंडीको मार डाला और उसा