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है कि, बहुतसे कहते हैं कि, "श्रावकको त्रिविध २ पच्चखान नहीं है" परंतु ऐसा नहीं, कारण कि, पनत्तिमें विशेष आश्रयसे त्रिविधत्रिविधको कथन किया है । कोई श्रावक विशेषअवस्थामें स्वयंभूरमणसमुद्रके अंदर रहनेवाले मत्स्यके मांसकी भांति मनुष्यक्षेत्रसे बाहर हस्तिदंत, सिंहचर्म, इत्यादि न मिलसके ऐसी वस्तुका अथवा कौवेका मांस आदि प्रयोजन रहित वस्तुका पच्चखान त्रिविध २ प्रकारसे करे तो दोष नहीं। बहुतसे यह कहते हैं कि कोई पुरुष दीक्षा लेनेको तत्पर हो, तो भी केवल पुत्रादिसंततिका रक्षण करने ही के हेतुसे (दीक्षा न लेकर ) ग्यारहमी श्रावकप्रतिमा प्राप्त करे तो उसे भी त्रिविधत्रिीवध पच्चखान होता है।" शंका:- आगममें अन्य प्रकारसे श्रावकके भेद सुननेमें आते हैं। श्रीठाणांगसूत्रमें कहा है कि श्रमणोपासक चार प्रकारके होते हैं, यथा-- १ मातपितासमान, २ बंधुसमान, ३ मित्र समान और ४ सपत्नी ( सौत ) समान । (अथवा अन्यरीतिसे) १ आरिसा (दर्पण) समान, २ ध्वजासमान, ३ स्तंभ (खंभा)समान और ४ खरंटक ( विष्ठादिक ) समान ।
समाधान:- ऊपर कहे हुए भेद भावकका साधुके साथ जो व्यवहार है उसके आश्रित है।
शंका:- ऊपरके भेद आपके कहे हुए भेदमें से किस भेदमें सम्मिलित होते हैं ?