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उन्हें इधर उधर घुमावें वह ध्वजासमान है २ । गीतार्थ मुनिराज चाहे कितना ही समझा। परन्तु जो अपना हठ न छोडे और साथही मुनिराज पर द्वेष भाव न रखे वह श्रावक स्तंभके समान है ३। जो श्रावक सद्धर्मोपदेशक मुनिराज पर भी " तू उन्मार्ग दिखानेवाला, मूर्ख, अज्ञानी तथा मंदधर्मी है । " ऐसे निन्ध वचन कहे, वह श्रावक खरंटक (विष्ठादिक) के समान है।। जैसे पतला (विष्ठादि अशुचि ) द्रव्य, स्पर्श करनेवाले मनुष्यको भी लग ही जाता है वैसे उत्तम उपदेश करनेवालेको भी जो दोष दे वह खरंटक (विष्ठादिक) के समान कहलाता है। निश्चयनयमतसे सपत्नीसमान व खरंटकसमान इन दोनोंको मिथ्यात्वी (द्रव्यश्रावक ) समझना चाहिये और व्यवहारनयमतसे श्रावक कहलाते हैं, कारण कि वे जिन मंदिरादिकमें जाते हैं।
श्रावकशब्दका अर्थ. स्रवंति यस्य पापानि, पूर्वबद्धान्यनेकशः । आवृतश्च व्रतैर्नित्यं, श्रावकः सोऽभिधीयते ॥ १॥ संपत्तदंसणाई, पइदिअहं जइजणा सुणेई अ।
सामायारिं परमं, जो खलु तं सावगं चिंति ॥ २॥ श्रद्धालुतां श्राति पदार्थचिंतनाद्ध नानि पात्रेषु वपत्यनारतम् ।
किरत्यपुण्यानि सुसाधुसेवनादतोऽपि तं श्रावकमाहुरुत्तमाः॥३॥ यद्वा-श्रद्धालुतां श्राति शृणोति शासनं, दानं वपत्याशु वृणोति दर्शनम् ।
कृतत्यपुण्यानि करोति संयम, तं श्र वकं प्राहुरमी विचक्षणाः॥४॥