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हर्षित होकर राजाने नगरमें उत्सव किया । वर्षाकालमें जलवृष्टिकी भांति बडे लोगोंका आनन्द भी सब जगह फैल जाता है।
युवराजकी भांति शुकराज राज्य कार्य देखने लगा। ठीक ही है, जो पुत्र समर्थ होते हुए भी पिताका राज्यभार हलका न करे वह क्या सुपुत्र हो सकता है ? पुनः वसंतऋतुका आगमन हुआ तब राजा दोनों पुत्रोंको साथमें लेकर सपरिवार एक दिन उद्यानमें गया । लज्जा छोडकर सब लोग अलग २ क्रीडा करने लगे, इतने ही में एकदम भयंकर कोलाहल उत्पन्न हुआ । राजाके पूछने पर किसी सरदारने तपास कर कहा कि, "हे प्रभो सारंगपुर पत्तनमें वीरांग नामक राजा है उसका शूर नामक शूरवीर पुत्र जैसे हाथी हाथीपर धावा करता है वैसे ही पूर्ववैरसे क्रोध सहित हंसराज पर चढ आया है ।" यह सुन राजा मनमें तर्क करने लगा कि, "मै राज्य करता हूं, शुकराज कारभार सम्हालता है, वीरांग मेरा सेवक (मांडलिक) है, ऐसा होते हुए शूर और हंसका परस्पर बैर होनेका क्या कारण है ?" यह सोचकर उत्सुक होकर उसने शुकराज व हंसराजको साथ ले शूरका सामना करनेके लिये ज्योंही कदम बढाया कि इतनेमें एक सेवकने आ निवेदन किया कि, "हे राजन् ! पूर्वभवमें हंसराजने शूरका पराभव किया था उस बैरसे वह हंसराजके सन्मुख युद्धकी याचना करता है । " यह सुन राजा मृगध्वज