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किया जा सकता। जिसमें चंद्रशेखर व चन्द्रवतीके समान उत्तम पुरुषोंको भी ऐसा कुमार्ग सूझता है । हे राजन् ! जिस समय तू एकाएक गांगलिऋषिके आश्रमको चला गया, उस समय अपना इष्ट मनोरथ पूर्ण करने के लिये चन्द्रवतीने हर्षसे चन्द्रशेखरको बुलवाया । वह तेरा राज्य हस्तगत करने ही के लिये आया था परन्तु उत्तंभक ( मणिविशेष ) से जैसे अग्नि दाह नहीं कर सकती वैसे ही तेरे पुण्यसे वह अपना स्वार्थ सिद्ध नहीं कर सका । पश्चात् वे दोनों ( चन्द्रवती व चन्द्रशेखर ) व्यक्ति भोलेकी भांति तुझे ठगनेके लिये नानाप्रकारके युक्तिपूर्ण वचनोंसे तुझे समझाते रहे । एक समय चन्द्रशेखरने कामदेव नामक यक्षकी आराधना की। उसने प्रकट होकर कहा कि, "हे चन्द्रशेखर ! मै तेरा कौनसा इष्ट कार्य करूं ?" चन्द्रशेखर बोला-"तू शीघ्र मुझे चन्द्रवती दे" यह सुन यक्षने एक अंजन देकर उससे कहा कि, "मृगध्वज राजा चन्द्रवतीके पुत्रको प्रत्यक्ष नहीं देखेगा तब तक चन्द्रवतीके साथ विलास करते इस अदृश्यकरण अंजनसे तुझे कोई नहीं देख सकेगा। जब मृगध्वज चन्द्रवतीके पुत्रको देखेगा तब सब बात प्रकट हो जायगी' यक्षकी यह बात सुन कर प्रसन्न हो चन्द्रशेखर चन्द्रवतीके महलमें गया । वहां अंजनयोगसे अदृश्य रहकर बहुत समय तक काम-क्रीडा करता रहा । उससे चन्द्रवतीको चन्द्राङ्क नामक पुत्र उत्पन्न हुआ । यक्षके प्रभावसे यह हाल