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में गया, मंत्रीने हर्षित हो कर वेषधारी शुकराजके पास आकर सारा वृत्तान्त कह सुनाया, तब वह पाखंडी स्त्री--लंपट भी प्रसन्न हुआ. वास्तविक शुकराज तोतेकी भांति शीघ्रता से आकाशमें जाने लगा, तब उसकी दोनों स्त्रियोंने अपने पीहर ( पिताके घर ) चलनेको कहा, परन्तु शर्मके कारण वह वहां नहीं गया । अपने पदसे भ्रष्ट हुए पुरुषने परिचित तथा नातेदारोंके घर नहीं जाना चाहिये, तथा श्वसुर-गृहको तो कदापि नहीं जाना चाहिये, कारण कि वहां तो आडम्बरसे ही जाना योग्य है । कहा है कि
सभायां व्यवहारे च, वैरिषु श्वशुरौकसि । आडंबराणि पूज्यंते, स्त्रीपु राज कुलेषु च ॥ १ ॥ ८४३ ॥
सभामें, व्यापारमें, शत्रुके सन्मुख, ससुर के घर, स्त्रीके पास और राज्यदरबारमें आडम्बरही की पूजा होती है । विद्याबलसे संपूर्ण और ऐश्वर्य परिपूर्ण होते हुए भी राज्य जानेकी चिन्तासे दुःखित वास्तविक शुकराजने शून्यस्थलमें निवास करके छः मास व्यतीत किये । बडे खेदकी बात है कि बडे २ मनुष्योंको भी ऐसा दुस्सह उपद्रव भोगना पडता है । अथवा सब दिन किसको समान सुखके दाता होते हैं ? कहा
है कि
कस्य वक्तव्यता नास्ति ?, को न जातो मरिष्यति ? । केन न व्यसनं प्राप्तं ?, कस्य सौख्यं निरंतरम् ? ।।११८४६॥