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जाकर श्रीआदिनाथभगवानकी भक्तिसे वन्दनापूर्वक स्तुति कर. तथा इस पर्वतकी गुफामें छः मास तक परमेष्ठीमंत्रका जप करे तो वह मंत्र स्वतंत्रतासे सर्व भांतिकी सिद्धियों का देनेवाला होता है । चाहे कैसाही शत्रु हो तो वह भी भयभीत सियालकी भांति देखते ही अपना जीव लेकर भाग जाता है और उसके सर्व कपट निष्फल हो जाते हैं । जिस समय गुफामें प्रकाश होवे तब तू समझ लेना कि 'कार्यसिद्धि' होगई । मनमें यह निश्चय करले कि कैसाही दुर्जय शत्रु हो, तो भी यह उसके जीतने का उपाय है."
केवली के ये वचन सुनकर शुकराजको ऐसा आनन्द हुआ जैसा कि किसी पुत्रहीन पुरुषको पुत्रप्राप्तिकी बात सुनकर होता है । तत्पश्चात् वह विमानमें बैठकर विमलाचल पर गया। वहां योगीन्द्रकी भांति निश्चय रह कर उसने परमेष्ठिमंत्रका जप किया. केवलीके वचनानुसार छः मासके अनन्तर चारों ओर उसने प्रकाश देखा, मानो उस समय उसका प्रताप उदय हुआ हो । उसी समय चन्द्रशेखर पर प्रसन्न हुई गोत्रदेवी निःप्रभाव हो उससे कहने लगी कि "हे चन्द्रशेखर. ! तेरा शुक-स्वरूप चला गया इसलिये अब तू शीघ्र अपने स्थानको चला जा" यह कह कर गोत्रदेवी अदृश्य होगई. चन्द्रशेखर अपने मूलस्वरूपमें होगया । किसी पुरुषकी सर्व लक्ष्मी चली गई हो उस प्रकार उद्विग्न, चिन्ताक्रान्त और हर्ष रहित होकर चौरकी भांति चुप