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ही आतुर हुआ । उसने यशोमती के वचनका तिरस्कार किया । सच्चे मातापिताकी परीक्षा करने तथा उनको देखनेके लिये वहांसे निकला । वह आज तुझे आकर मिला । यशोमती बगुलेकी भांति पति तथा पुत्रसे भ्रष्ट हो गई । जिसमे उसे वैराग्य हुआ, दीक्षा लेनेका विचार किया, परन्तु जैन साध्वीका योग न मिलने से वह योगिनी हो गई, मैं वही यशोमती हूं । भवकी उत्तम भावनाओंका मनन करनेसे मुझे शीघ्र कितना ही ज्ञान प्राप्त हुआ, इससे मैं यह सब बात जानती हूं। उमी चतुर यक्षने आकाशवाणी के रूपमें मुझसे सर्व वर्णन कहा था सो यथावत् मैनें तुझे कह सुनाया " यह अयुक्त बात सुनकर राजाको बहुत क्रोध उत्पन्न हुआ, साथही मनमें बहुत ही खेद हुआ, अपने घरका ऐसा हाल सुनकर कौन दुखी न हो ? पश्चात् सत्यवादिनी योगिनीने राजाको प्रतिबोध करनेके हेतु योगिनकी भाषाकी रीति के अनुसार मधुरवचनसे कहा-
कवण केरा पुत्तमित्ता, कवण केरी नारी ।
मोहिओ मेरी मेरी, मूढ भणइ अविचारी ॥ १ ॥ जोगिन जोगी हो हो, जोइन जोग विचारा | मेल्हि अमारग आदरि मारग, जिम पामो भव पारा ||२||जा० अतिहि गहना अतिहि कूडा, अतिहि अथिर संसारा । भामु छाँडी योगजु मांडी, कीजे जिनधर्म सारा ॥ ३ ॥ मोहे मुहिओ को खोहिओ, लोहे वहिओ धाई ।