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बहुत ही कठिन है। आधा मार्ग चलनेके बाद मंत्रीको स्मरण आया कि "अपनी एक श्रेष्ठ वस्तु वहां रह गई है, तब मंत्रीने एक दृतसे कहा कि, "तू शीघ्र विमलपुर जा और अमुक वस्तु ले आ." दृतने उत्तर दिया कि, "शून्य नगरमें मैं अकेला कैसे जाऊं ?" इस पर मंत्रीने रोषमें आकर जबरदस्तीसे उसे भेजा। उस दूतने विमलपुरमें आकर भी किसी भिल्ल के इष्ट वस्तुको लेकर चले जानेके कारण कुछ न पाया। जब वह खाली हाथ लौटकर आया तो मंत्रीने और भी क्रोधित हो कर उसे खूब मारा तथा मूर्छितावस्थामें ही मार्गमे छोड आगेको प्रस्थान किया । लोभसे मनुष्यको कितनी मूर्खता प्राप्त होती है? धिक्कार है ऐसे लोभको । क्रमशः मंत्री सपरिवार भदिलपुरमें पहुंचा । इधर शीतल पवनके लगनेसे उस दूत को भी चैतन्यता हुई । स्वार्थरत सब साथियोंको गये जान कर वह मनमे विचार करने लगा कि । "प्रभुताके अहंकारसे उन्मत्त इस अधम मंत्रीको धिक्कार है ! कहा है कि--
चौ--चिल्लाकाई गंधिअ भट्टा य विज्जपाहुणया । वेसा धूअ नरिंदा परम्स पीडं न याति ॥१: ७२३॥
चौर, बालक किरानेकी दूकानवाला ( अत्तार ), रणयोद्धा, वैद्य, पाहुना, वेश्या, कन्या तथा राजा ये नौ व्यक्ति परदुःखको नहीं समझती हैं । इस भांति व्याकुल होकर मार्ग न जाननेसे वह वनमें भटकते २ क्षुधा तथा तृषासे बहुत पीडित