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तदनन्तर मृगध्वज राजाने पूछा कि, हे महाराज युवा. वस्थामें ही आपको ऐसा बैराग्य प्राप्त हुआ, अतः आपको धन्य है ! क्या मुझे भी किसी समय ऐसा वैराग्य होगा? केवली भगवानने उत्तर दिया, 'हे राजन् ! तेरी चन्द्रवती नामक रानीके पुत्रका मुंह देखते ही तुझे दृढ वैराग्य प्राप्त होगा.'
मुनिराजके वचनोंको सत्य मान कर राजा उनको वन्दना कर हर्षपूर्वक सपरिवार अपने महल में आया । अपनी सौम्यदृष्टिसे मानों अमृतवृष्टि करता हो ऐसा शुकराज जब दश वर्षका हुआ तब रानी कमलमालाको दूसरा पुत्र उत्पन्न हुआ । रानीके पूर्वस्वमके अनुसार उसका नाम 'हंसराज ' रखा गया। शुक्लपक्षके चन्द्रमाकी भांति अपनी रूपादिक समृद्धिके साथ वह दिन प्रतिदिन बढने लगा। साथ ही राम लक्ष्मणकी भांति शुकराज व हंसराज दोनों प्रेमपूर्वक साथ २ खेलने लगे । तथा जैसे काम और अर्थ दोनों धर्मकी सेवा करते हैं इस भांति पिताकी सेवा करने लगे । एक दिन राजा मृगध्वज सभामें बैठे थे कि द्वारपालने आकर तीन शिष्योंके साथ गांगलि ऋषिके आनेकी सूचना दी और आज्ञा पाकर उन्हें अन्दर लाया ।
राजाने ऋषिको योग्य आसन देकर कुशल-क्षेमादि पूछा, ऋषिने भी यथाविधि क्षेम कुशल पूछ कर आशीर्वाद दिया। पश्चात् राजाने विमलाचल तथा ऋषिके आश्रमका समाचार पूछ कर प्रश्न किया कि, “ यहां आपका आगमन किस हेतुसे और