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"सत्यभाषी श्रीदत्तका वचन तूं क्यों नहीं मानता ? राजाने लज्जित होकर उसी समय श्रीदत्तको बुलाया और आदरयुक्त अपने पास बैठा कर मुनिराजसे पूछा कि "महाराज ! यह सत्य-भाषी कैसे ?" इतने ही में वही बंदर पीठ पर सुवर्णरेखाको लिये हुए वहां आया तथा उसे पीठसे उतार कर आप भी वहीं बैठ गया । सब लोग कौतुकसे उसे देखने लगे । राजा आदि सबने सत्यवक्ता श्रीदत्तकी बहुत प्रशंसा की तथा केवली भगवानसे सब वृत्तान्त पूछा । तब उन्होंने सब बात यथार्थ कह सुनाई।
तत्पश्चात् श्रीदत्तने सरल-भावसे प्रश्न किया कि, "हे महाराज ! मुझे अपनी माता तथा पुत्री पर कामवासना क्यों उत्पन्न हुई ?"
केवली भगवानने कहा कि, "यह सब तेरे पूर्वभवका प्रभाव है इसलिये तेरा पूर्व भव सुन
· पांचालदेशके कांपिल्यपुरनगरमें अग्निशर्मा नामक ब्राह्मण रहता था। उसके चैत्र नामक एक पुत्र था । चैत्रको शंकरकी भांति गंगा व गौरी नामक दो स्त्रियां थी । एक बार वह ब्राह्मणपुत्र चैत्र, मैत्र नामक मित्रके संग कुंकण देशमें याचना करने गया । ब्राह्मणोंको याचना बहुत ही प्रिय लगती है। ग्राम ग्राम भ्रमण करके उन्होंने बहुतसारा द्रव्य उपार्जन किया । एक दिन जब कि चैत्र सो रहा था, मैत्रने हृदयमें दुष्ट अध्यवसाय