________________
होगी?" वेश्या सुवर्णरेखाने उत्तर दिया कि, "हे चतुर ! तियच जातिके विषयमें यह क्या प्रश्न ? इसमें कोई इसकी माता होगी, कितनी ही बहिने होंगी, कितनी ही पुत्रियां होगी, तथा कितनी ही और कोई होगी, " यह सुन श्रीदत्तने शुद्ध चित्त व गम्भीरतासे कहा कि जिसमें माता, पुत्री, बहिन इतना भी भेद नहीं ऐसे अविवेकी तियचके अतिनिंद्य जीवनको धिक्कार है ! वह नीच जन्म व जीवन किस कामका है ? जिसमें इतनी भारी मूर्खता हो कि कृत्याकृत्यका भेद भी न जाना जा सके"
यह सुन जैसे कोई अभिमानी वादी किसीका आक्षेप वचन सुन कर शीघ्र जबाब देता हो वैसे ही उस बन्दरने जाते २ वापस फिर कर कहा कि, " रे दुष्ट ! रे दुराचारी ! रे दूसरोंके छिद्र देखनेवाले ! तूं केवल पर्वत पर जलता हुआ देखता है परन्तु यह नहीं देखता कि स्वयं अपने पैर नीचे क्या जल रहा है ? केवल तुझे दूसरेके ही दोष कहते आते हैं! सत्य है
राईसरिसवमित्ताणि परच्छिदाणि गवेसइ ।
अप्पणो बिल्लभित्ताणि पासंतोवि न पासई ॥१॥ दुष्ट मनुष्य को दूसरेके तो राई अथवा सरसोंके समान दोष भी शीघ्र दीख पडते हैं परन्तु अपने विल्यफलके समान दोष दीखते हुए भी नहीं दिखते । रे दुष्ट! नीच इच्छासे एक तरफ अपनी माता तथा एक तरफ अपनी पुत्रीको बैठा कर तथा अपने मित्रको समुद्र में फेंक कर तूं मेरी निन्दा करता है?"यह कह कर