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पवयणसारो ] शुद्धानन्तशक्तिज्ञानविपरिणमनस्वभावस्याधारभूतत्वादधिकरणत्वमात्मसाकुर्वाणः, स्वयमेव षटकारकीरूपेणोपजायमानः, उत्पत्तिव्ययापेक्षया द्रम्यभावभेदभिन्नघातिकर्माग्यपास्य स्वयमेवाविर्भूतत्वाद्वा स्वयंमूरिति निदिश्यते । अतो न निश्चयतः परेण सहात्मनः कारकत्यसम्बन्धोऽस्ति, यतः शुद्धात्मस्वभावलाभाय सामग्रीमार्गणव्यग्रतया परतंत्रभूयते ।।१६।।
_भूमिका- अब, शुद्धोपयोग से उत्पन्न होने वाले शुद्ध आत्म-स्वभाव के लाभ के अन्य कारकों को निरपेक्षता होने से, अत्यन्त स्वात्माधीनपने को प्रगट करते हैं :
अन्वयार्थ---तथा! इस प्रकार | जल स्वभाब भाद्र को पान |सः आत्मा ] वह आत्मा [ सर्वज्ञः] सर्वज्ञ | सर्वलोकपतिमहितः | और सर्व (तीन) लोक के अधिपतियों (स्वामियों) से पूजित [स्वयं एक भूतः] स्वयमेव होता हआ (होने से) [स्वयम्भू भवति | होता है [इति ] ऐसा [निर्दिष्ट:] कहा गया है ।
टीका-शुद्ध उपयोग की भावना के प्रभाव से समस्त धातिकमों के नष्ट हो जाने से प्राप्त किया है शुद्ध अनन्तशक्तिवान् चैतन्य स्वभाव जिसने, ऐसा यह आत्मा वास्तव में, (१) शुद्ध अनन्त शक्ति (युक्त) शायक स्वभाव के द्वारा स्वतन्त्र होने के कारण से ग्रहण किया है 'कर्तापने के अधिकार को जिसने, ऐसा (होता हुआ) (२) शुद्ध अनन्त शक्ति (युक्त) ज्ञान रूप से परिणत स्वभाव के द्वारा (स्वयं ही) प्राप्य होने के कारण से (स्वयं ही प्राप्त होता होने से) 'कर्मपने' को अनुभव करता हुआ, (३) शुद्ध अनन्त शक्ति (युक्त) ज्ञान रूप से परिणत स्वभाव के द्वारा (स्वयं ही) साधकतम (उत्कृष्ट साधन) होने के कारण से 'करणपने' को धारण करता हुआ, (४) शुद्ध अनन्त-शक्ति (युक्त) ज्ञान रूप से परिणमित स्वभाव द्वारा (स्वयं ही) कर्म द्वारा समाश्रित होने के कारण (अर्थात कर्म स्वयं को ही देने में आता होने से) सम्प्रदानपने को धारण करता हुआ, (५) शुद्ध अनन्त शक्ति (मय) ज्ञानरूप से परिणत होने के समय में पूर्व में प्रवर्तमान विकलज्ञान स्वभाव का नाश होने • पर भी सहजज्ञान स्वभाव द्वारा (स्वयं ही) ध्रुवता को अवलम्बन करने से 'अपादानपने' को धारण करता हुआ, और (६) शुद्ध अनन्त शक्ति (युक्त) ज्ञान रूप से परिणमित स्वभाव का (स्वयं ही) आधार होने के कारण से 'अधिकरणपने को आत्मसात् करता हुआ (इस प्रकार) स्वयमेव छ: कारकरूप से उत्पन्न होता हुआ (स्वयंभू' इस नाम से कहा जाता है); अथवा उत्पत्ति अपेक्षा से, द्रव्य-भाव भेव रूप घातिकर्मों को दूर करके, स्वयमेव आविर्भूत होने के कारण से, 'स्वयंभू' इस नाम से कहा जाता है ॥१६॥