Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म दर्शन
उपासकदशा के दस अध्ययनों में भगवान महावीर के दस प्रमुख उपासकों अर्थात् श्रावकों की कथाएँ हैं । 'आनन्द' नामक प्रथम अध्ययन में श्रावक के बारह व्रतों का विशेष विवेचन है ।
अन्तकृतदशा में आठ वर्ग हैं। इनमें क्रमशः दस, आठ, तेरह, दस, दस, सोलह, तेरह और दस अध्ययन हैं। अन्तकृत अर्थात् संसार का अन्त करनेवाला। जिसने अपने संसार अर्थात् भवचक्र ( जन्म-मरण ) का अन्त किया है ऐसी आत्मा 'अन्तकृत' कही जाती है। अन्तकृतदशा में इसी प्रकार की कुछ आत्माओं की दशा का वर्णन है।
अनुत्तरौपपातिकदशा तीन वर्गों में विभक्त है। प्रथम वर्ग में दस, द्वितीय में तेरह और तृतीय में दस अध्ययन हैं। जो व्यक्ति अपने तप एवं संयम द्वारा किसी अनुत्तर ( श्रेष्ठ) विमान में देवरूप से उत्पन्न होता है वह 'अनुत्तरौपपातिक' कहा जाता है । प्रस्तुत अंगग्रन्थ में इसी प्रकार के कुछ व्यक्तियों की दशा का वर्णन है।
प्रश्नव्याकरण का जो परिचय स्थानांग, समवायांग एवं नन्दीसूत्र में मिलता है उससे उपलब्ध प्रश्नव्याकरण सर्वथा भिन्न है। विद्यमान संस्करण में हिंसादिक पाँच आस्रवों तथा अहिंसादिक पाँच संवरों का दस अध्ययनों में निरूपण है।
विपाकश्रुत दो श्रुतस्कन्धों में विभक्त है : दुःख विपाक और सुखविधाक । दु:खविपाक में अशुभ कर्म अर्थात् पाप के विपाक अर्थात् फल का दस अध्ययनों में दस कथाओं के माध्यम से निरूपण किया गया है। इसी प्रकार सुखविपाक में दस कथाओं के माध्यम से शुभ कर्म अर्थात् पुण्य के विपाक का दस अध्ययनों में निरूपण हुआ है।
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