Book Title: Jain Dharma Darshan Ek Samikshatmak Parichay
Author(s): Mohanlal Mehta
Publisher: Mutha Chhaganlal Memorial Foundation Bangalore
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जैन धर्म-दर्शन
इनमें से एक कहता है कि तू पहले मरेगा और दूसरा कहता है कि तू पहले मरेगा । उन दोनों की श्रसंयत एवं प्रक्षेपपूर्ण भाषा से वे लोग सच-झूठ का निश्चय नहीं कर पाते थे ।
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अब गोशाल की हतप्रभता एवं दुर्बलता का लाभ उठाते हुए अरिहंत महावीर ने अपने निर्ग्रन्थ श्रमणों को बुलाकर गोशाल के विरुद्ध उत्तेजित करते हुए कहा - जिस प्रकार तृण, काष्ठ, पत्र आदि का ढेर अग्नि से जल जाने पर हतप्रभ हो जाता है उसी प्रकार गोशाल भी मेरे वध के लिए तेजोलेश्या निकालकर हतप्रभ हो गया है । अब तुम लोग उसके सामने जाकर उसके मत के प्रतिकूल यथेच्छ वचन कहो, उसे विविध प्रकार से निरुत्तर करो । निर्ग्रन्थ श्रमणों ने विविध प्रकार के प्रश्नोत्तरों द्वारा गोशाल को निरुत्तर कर दिया । इससे गोशाल अत्यन्त क्रोधित हुआ किन्तु वह निर्ग्रन्थ श्रमणों का कुछ भी न बिगाड़ सका ।
सर्वज्ञ जिनेन्द्र महावीर की सावद्य भविष्यवाणी के अनुसार सातवीं रात्रि व्यतीत होने पर गोशाल मृत्यु को प्राप्त हुआ । महावोर को भी अत्यन्त पीड़ाकारी पित्तज्वर का दाह उत्पन्न हुआ तथा खून की दस्तें लगने लगीं। उनकी यह स्थिति देखकर लोग आपस में चर्चा करने लगेअब महावीर गोशाल के कथनानुसार छः मास पश्चात् छद्मस्थावस्था में ही मृत्यु प्राप्त करेंगे। महावीर के शिष्य सिंह अनगार ने भी यह चर्चा सुनी। इससे उन्हें बहुत दुःख हुआ और वे रुदन करने लगे । शतककारकृत इस प्रकार के वर्णन से मालूम होता है कि महावीर की वीतरागता, सर्वज्ञता एवं असाधारणता से सामान्य जनसमूह तो अपरिचित था ही, उनके कुछ शिष्य भी इन विशिष्ट गुणों एवं शक्तियों से परिचित न थे । अथवा यों कह सकते हैं कि महावीर की इन असाधारण विशेषताओं के प्रति इन लोगों को पूरा विश्वास नहीं था । श्रन्यथा ये लोग इस प्रकार श्रविश्वासपूर्ण आचरण क्यों करते ?
सर्वज्ञ महावीर ने सिंह अनगार की निर्ग्रन्थों को उन्हें बुलाने के लिए भेजा ।
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वेदना जान ली। उन्होंने सिंह अनगार के श्राने पर
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