Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 09 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
--
-
प्रमेयचन्द्रिका टीका श० १० १० २ सू० ३ वेदनास्वरूपनिरूपणम् ५५ पुद्गलद्रव्यसम्बन्धात् द्रव्य वेदना, नारकादिक्षेत्रसम्बन्धात् क्षेत्रवेदना, नारकादिकालसम्बन्धात् कालवेदना, क्रोधशोकादि भावसम्बन्धात् भाववेदना। सर्व संसा. रिणो जीवाश्चतुर्विधामपि वेदनां वेदयन्ति। एवं 'तिविहा वेयणा-सारीरा, माणसा, सारीरमाणसा' पुनस्त्रिविधा वेदना, शारीरी, मानसी, शारीरमानसीच । तत्र समस्का त्रिविधामपि वेदना, वेदयन्ति, असंज्ञिनस्तु शारीरीमेव वेदनां वेदयन्ति । तथा'तिविहा वेयणा साया, असाया, सायासाया' पुनत्रिविधा वेदना-शाता अशाता, शाताऽशाताच । तत्र सर्वे संसारिणत्रिविधामपि वेदनां वेदयन्ति, तथा-'तिविहा होती है वह पुद्गल द्रव्य के सम्बन्ध से होती है। नारकादि क्षेत्र के संबंध से जो वेदना होती है वह क्षेत्र वेदना है। नारकादि काल के सम्बन्ध से जो वेदना होती है वह काल वेदना है। क्रोध, शोक आदि भाव के सम्बन्ध से जो वेदना होती है वह भाव वेदना है। समस्त संसारी जीव इस चतुर्विध वेदना का अनुभव करते रहते हैं । 'तिविहा वेयणा -सारीरा, माणसा, सारीरमाणसा' वेदना इस तरह से तीन प्रकार की भी होती है-शारीरिक वेदना, मानसिक वेदना और शारीरिकमानसिक वेदना. इनमें जो समनस्क (संजी) जीव हैं वे तीनों प्रकार की वेदना भोगते रहते हैं। तथा असंज्ञी जो जीव है वे केवल शारी. रिक वेदना को ही भागते हैं। 'तिविहा वेयणा साया, असाया, सायासाया' तथा शाता, अशाता और शाताशाता के भेद से भी वेदना तीन प्रकारकी है। समस्त संसारी जीव इस त्रिविध वेदनाको भोगते रहते
પુદ્ગલ દ્રવ્યના સંબંધી વેદના હેય છે. નારકાદિ ક્ષેત્ર સંબંધી જે વેદના છે તેને ક્ષેત્રવેદના કહે છે. નારકાદિ કાળ સંબંધી જે વેદના થાય છે તેને કાળ વેદના કહે છે કે, શોક આદિ ભાવની અપેક્ષાએ જે વેદના થાય છે તેને ભાવના કહે છે. સમસ્ત સંસારી જી આ ચારે પ્રકારની વેદનાને અનુભવ ४२ता २९ छे. “तिविहा वेयणा-सारीरा, माणसा, सारीरमाणसा" हनाना मा प्रमाणे ५ त्रप्रा२ ५४ छ-(१) शारी२ वहना, (२) मानसि वहना, અને (૩) શારીરિક માનસિક વેદના. એમાં જે સમનસ્ક-સંજ્ઞી- જીવે છે તેઓ ત્રણે પ્રકારની વેદના ભગવ્યા કરે છે પરંતુ અસંજ્ઞી છે ફક્ત શારીરિક વેદને જ ભોગવે છે.
तिविहा वेयणा-साया, असाया, सायासाया" तथा वहनाना मा प्रभार ५५ १ मारे। ५४ छ-(1) शतावना, (२) अतावना (3) Atal વેદના. સમસ્ત સંસારી જીવ આ ત્રિવિધ વેદનાને ભેગવ્યા કરે છે.
શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૯