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युगवीर - निबन्धावली
रोगाकान्त एवं निर्बल तैयार होता है और उसमे प्राय छोटे तथा हीन विचार ही उत्पन्न होते है । अच्छी खुराक वह वस्तु है कि जिसके प्रभाव से अन्य कारणोसे उत्पन्न हुई निर्बलताका भी सहज ही में सशोधन हो जाता है । इसीके प्रभावसे रोगोके आराम होनेमे भी बहुत कुछ सहायता मिलती है ।
हम लोग कुछ तो जन्मसे ही निर्बल पैदा हुए, कुछ बचपनकी गलतकारियो-योग्य प्रवृत्तियों -- एव स्वास्थ्य-रक्षाके नियमोको न पालन करने हमको निर्बल बनाया, और जो कुछ रहा सहा बल था भी, वह अच्छी खुराक के न मिलनेसे समाप्तिको पहुँच गया । हम लोगोकी सबसे अच्छी खुराक थी घी और दूध, वही हमको प्राप्त नही होती । इधर हम लोगोने गोरस-प्राप्ति और उसके सेवनकी विद्याको भुला दिया उधर धर्म-कर्म - विहीन अथवा मानवतासे रिक्त निर्दय मनुष्योने घी-दूधकी मशीन स्वरूप प्यारी गौलोका वध करना आरम्भ कर दिया और प्रतिदिन अधिक से अधिक सख्यामे गोवशका विनाश होता रहनेसे घी-दूध इतना करा ( महँगा ) हो गया कि सर्व-साधारण के लिये उसकी प्राप्ति दुर्लभ हो गई । जो घी जसे कोई १०० वर्ष पहले रुपयेका घडी (५ सेर पक्का) और ७५ वर्ष पहले तीन सेरसे अधिक ग्राता था वही घी प्राज रुपयेका ३ या ४छटा आता है और फिर भी अच्छा शुद्ध नही मिलता । इसी प्रकार जो दूध पहले पैसे या डेढ पैसे सेर प्राया करता था वही दूध
* मेरे विद्यार्थी जीवन (सन् १८६६ आदि ) मे, सहारनपुर बोडिङ्गहाउसमे रहते हुए, मुझे क्बल दोरुपये मामिकका घी भेजा जाता था और वह वजनमे प्राय साढे तीन सेर पक्का होता था। साथ ही इतना शुद्ध, माफ और सुगवित होता था कि उस जैसे घीका प्राज बाजारमे दर्शन भी दुर्लभ हो गया है । यह भारतकी दशाका कितना उलटफेर है ॥