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महावीरका सर्वोदयतोर्थ
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तीर्थको सर्वोदयका निमित्त कारण बतलाया गया है । तव उसका उपादान कारण कौन है ? उपादान कारण वे सम्यग्दर्शनादि श्रात्मगुरण ही हैं जो तीर्थका निमित्त पाकर मिथ्यादर्शनादिके दूर होने पर स्वय विकासको प्राप्त होते हैं । इस दृष्टिसे 'सर्वोदयतीर्थ' पदका एक दूसरा अर्थ भी किया जाता है और वह यह कि 'समस्त अभ्युदयकाररणोका - सम्यग्दर्शन- सम्यग्ज्ञान-सम्यक्चारित्ररूप त्रिरन-धर्मोका जो हेतु है- उनकी उत्पत्ति अभिवृद्धि ग्रादिमे ( सहायक ) निमित्त - कारण है - वह 'सर्वोदयतीर्थ' है ' । इस दृष्टिसे ही, कारणमे कार्यका उपचार करके इस तीर्थको धमतीथ कहा जाता है और इसी दृष्टिसे वीर जिनेन्द्रको घर्मतीर्थका कर्ता (प्रवर्तक) लिखा है, जैसा कि हवी शताब्दीकी बनी हुई 'जयववला' नामकी सिद्धान्तटीकामे उद्धृत निम्न प्राचीन गाथासे प्रकट है
स्सिमयकरो वोरो महावीरा जिगुत्तमी । राग-दोम-भयादीदो धम्मतित्यस्म कारश्र ॥
इस गाथामे वीर - जिनको जो 'नि सशयकर' - ससारी प्राणियोके सन्देहोको दूर कर उन्हे सन्देहरहित करनेवाला -- 'महावीर ' - ज्ञानवचनादिकी सातिशय-शक्ति से सम्पन्न - जिनोत्तम - जितेन्द्रियो तथा कर्मजेताश्रमे श्रेष्ठ और 'रागद्वेष-भयसे रहित' बतलाया है वह उनके घर्मतीथ - प्रवर्तक होने के उपयुक्त ही है । बिना ऐसे गुणोकी सम्पत्ति से युक्त हुए कोई सच्चे धर्मतीर्थका प्रवर्तक हो ही नही सकता। यही वजह है कि जो ज्ञानादिशक्तियोंसे हीन होकर रागद्वेषादिसे अभिभूत एव आकुलित रहे है उनके द्वारा सवथा एकान्तशासनो -- मिथ्यादर्शनोका ही प्रणयन हुआ है, जो जगतमे अनेक भूलभ्रान्तियो एव दृष्टिविकारोको जन्म देकर दु खोके जालको विस्तृत
१. 'सर्वेषामभ्युदय काररगाना सम्यग्दशनज्ञानचारित्रभेदाना हेतुत्वादभ्युदयहेतुत्वोपपत्ते ।' -विद्यानन्द