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महावीरका सर्वोदयतीर्थ जाय, इसकी सब रुकावटोको दूर किया जाय, इस पर खुले प्रकाश तथा खुली हवाकी व्यवस्था की जाय, इसका फाटक सबोके लिये हर वक्त खुला रहे, सभीके लिये इस तीर्थ तक पहुँचनेका मार्ग सुगम किया जाय, इसके तटो तथा घाटोकी मरम्मत कराई जाय बन्द रहने तथा अर्से तक यथेष्ट व्यवहारमे न आनेके कारण तीर्थजल पर जो कुछ काई जम गई है अथवा उसमे कही-कही शैवाल उ पन्न हो गया है उसे निकालकर दूर किया जाय और सर्वसाधारणको इस तीथके माहात्म्यका पूरा-पूरा परिचय कराया जाय । ऐसा होने पर अथवा इस रूपमे इस तीथका उद्धार किया जाने पर आप देखेंगे कि देश देशान्तरके कितने बेशुमार यात्रियोकी इस पर भीड रहती है, कितने विद्वान् इस पर मुग्ध होते है, कितने असख्य प्राणी इसका आश्रय पाकर और इसमें अवगाहन करके अपने दु ख-सतापोसे छुटकारा पाते हैं और ससारमें कैसी सुख-शान्तिकी लहर व्याप्त होती है। स्वामी समन्तभद्रने अपने समयमे, जिसे आज १८०० वषके लगभग हो गये है ऐसा ही किया है, और इसीसे कनडी भाषाके एक प्राचीन शिलालेख' मे यह उल्लेख मिलता है कि 'स्वामी समन्तभद्र भगवान् महावीरके तीर्थकी हजारगुनी वृद्धि करते हुए उदयको प्राप्त हए'---अर्थात्, उन्होने उसके प्रभावको सारे देश-देशान्तरोमे व्याप्त कर दिया था। आज भी वैसा ही होना चाहिये। यही भगवान महावीरकी सच्ची उपासना, सच्ची भक्ति और उनकी मच्ची जयन्ती मनाना होगा।
१ यह शिलालेख बेलूर ताल्लाका शिलालेख नम्बर १७ है, जा रामानुजाचार्य-मन्दिरसे अहाते के अन्दर सौम्यनायको-मन्दिरकी छतन एक पत्थर पर उत्कीरण है और शक सम्बत् १०५६ का लिखा हुआ है। देखो, एपिनेफिका कर्णाटिकाकी जिल्द पांचवी, 'स्वामी ममन्तभद्र' पृष्ठ ४६ अथवा समीचीन-धर्मशास्त्रको प्रस्तावना पृष्ठ ११३ ।