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देशकी वर्तमान परिस्थिति और हमारा कर्तव्य २०७ अपनी भूलको समझने लगे हैं और यह देशके लिये बडा ही शुभ चिन्ह है। ___ यह देशकी अग्नि-परीक्षाका अथवा उससे भी अधिक किसी दूसरी काठन परीक्षाका समय है। और इसी अन्तिम परीक्षा पर भारतका भविष्य निर्भर है । यदि हम इस परीक्षामे उत्तीरण हो गयेसब कुछ कष्ट सहन करके भी हमने शाति बनाये रक्खी और किसी प्रकारका कोई उपद्रव या उत्पात न किया तो स्वराज्य फिर हाथमे ही समझिये, उसके लिये एक कदम भी आगे बढानेकी जरूरत न होगी। और यदि दुर्भाग्यसे हम इस परीक्षामे पास न हो सके-हमने हिम्मत हार दी-तो फिर हमारी वह दुर्गति बनेगी और हमारे साथ वह बुग सलूक किया जायगा कि जिसकी कल्पना मात्रसे शरीरके गेगटे खडे हो जाते है । उस समय हम गुलामोसे भी बदतर गुलाम ही नही होगे बल्कि 'जिन्दा दरगोर" होगे और पशुओसे भी बुरा जीवन व्यतीत करनेके लिये बाध्य किये जायेंगे। और इस आपत्तिके स्थायी पहाडका सपूर्ण बोझ उन लोगोकी गर्दन पर होगा और वे देशके द्रोही समझे जायेंगे जो इस समय देशका साथ न देकर ऐसी परिस्थितिको लानेमे किसी न किसी प्रकारसे सहायक बनेगे।
देशकी किश्ती (नौका) इस समय भंवरमे फंसी हुई है और पार होनेके लिये सयुक्त बलके सिर्फ एक ही धक्केकी प्रतीक्षा कर रही है। मी हालतमे वह भवरमे क्यो फंसी, गहरे जलमे क्यो उतारी गई और क्यो भंवरकी ओर खेई गई, इस प्रकारके तर्क-वितर्कका या किसीके शिकवे-शिकायत सुननेका अवसर नहीं है। पार होनेके लिये उसे गहरे जलमें उतरना ही था, दूसरा मार्ग न होनेसे भँवरकी ओर उसका खेया जाना अनिवार्य था और इसलिये भंवरमे फंसना भी उसका अवश्यम्भावी था, यही सब सोच समझकर अब हमें अपने
१ जीते ही कबमें दफन बिसी अवस्थामे