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बड़ेसे छोटा और छोटेसे बड़ा भी बैसा कहा है तो कहना चाहिये कि वह उनका कदाग्रह है-हठधर्मी है क्योकि ऊपर-नीचे देखते हुए मध्यकी लाइन सर्वथा छोटी या सर्वथा बडी प्रतीत नही होती और न स्वरूपसे कोई वस्तु मर्वथा छोटी या सर्वथा बड़ी हुआ करती है।
अध्यापक-मानलो, तुम्हारे इस दोष देनेसे बचनेके लिये एक तीसरा विद्यार्थी दोनो एकान्तोको अपनाता है-~-'छोटी ही है और बडी भी है' ऐसा स्वीकार करता है, परन्तु तुम्हारी तरह अपेक्षावादको नही मानता । उसे तुम क्या कहोगे ?
विद्यार्थी थोडा सोचने लगा,इतनेमे अध्यापकजी विषयको स्पष्ट करते हुए बोल उठे--
'इसमे सोचनेकी क्या बात है ? उसका क्थन भी विरोध-दोषसे दूषित है; क्योकि जो अपेक्षावाद अथवा स्याद्वाद-न्यायको नहीं मानता उसका उभय-एकान्तको लिए हुए कथन विरोध-दोषमे रहित हो ही नहीं सक्ता--अपेक्षावाद अथवा 'स्यात्' शब्द या स्यात् शब्दके माशयको लिये हुए क्थचित्' (एक प्रकारसे) जैसे शब्दोका साथमे प्रयोग ही कथनके विरोध-दोषको मिटानेवाला है। कोई भी वस्तु सर्वथा छोटी या बडी नही हुआ करती यह बात तुम अभी स्वय स्वीकार कर चुके हो और वह ठीक है, क्योकि कोई भी वस्तु स्वतत्ररूपसे अथवा स्वभावसे सर्वथा छोटी या बड़ी नही है--किसा भी वस्तुमे छोटेपन या बडेपनवा व्यवहार दूसरेके आश्रय अथवा पर-निमित्त से ही होता है और इसलिये उस आश्रय अथवा निमित्तकी अपेक्षाके बिना वह नहीं बन सकता । अत अपेक्षासे उपेक्षा धारण करनेवालोके ऐसे कथनमे सदा ही विरोध बना रहता है। दे 'ही' की जगह 'भी' का भी प्रयोग करदे तो कोई अन्तर नही पड़ता । प्रत्युत उसके जो स्याद्वादन्यायके अनुयायी हैं-एक अपेक्षासे बोटा और दूसरी अपेक्षासे बड़ा मानते हैं-वे साथमे यदि 'ही' शब्दका भी प्रयोग करते हैं तो उससे कोई बाधा नही आती