Book Title: Yugveer Nibandhavali Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 433
________________ ४१६ युगवीर निबन्धावली स्वय अपनेको भी समाजसेवाके लिये अर्पित कर दिया है और अपने दानद्रव्यके सदुपयोगकी व्यवस्थामे लगे हुए है। अब बतलायो दस-दस हजारके इन चारो दानियोमेसे क्या कोई दानी ऐसा है जिसे तुम पाँच-पाँच लाखके उक्त चारो दानियोमेसे किसीसे भी बड़ा कह सको ? यदि है तो कौन-सा हे और वह क्सिसे बडा है ? विद्यार्थी-मुझे तो ये दस-दस हजारके च रो हो दानी उन पाँच-पाँच लाखके प्रत्येक दानीसे बड़े दानी मालूम होते है। अध्यापक-कैसे ? जरा समझाकर बतलायो ? विद्यार्थी-पाँच लाखके प्रथम दानी सेठ डालनन्दने जो द्रव्य दान किया है वह उनका अपना द्रव्य नहीं है, वह वह द्रव्य है जो ग्राहकोसे मुनाफेके अतिरिक्त धर्मादाके रूपमे लिया गया है, न कि वह द्रव्य जो अपने मुनाफेमेसे दानके लिये निकाला गया हो । और इसलिये उसमे सैक्डो व्यक्तियोका दानद्रव्य शामिल है । अत दानके लक्षणानुसार सेट डालचन्द उस द्रव्यके दानी नहीं कहे जा सकतेदानद्रव्य व्यवस्थापक हो सकते है । व्यवस्थामे भी उनकी दृष्टि अपने व्यापारकी रही है और इसलिये उनके उस दानका कोई विशेष मूल्य नही है--वह दानके ठीक फलोको नही फल सकता । पाँच लाखके दानी शेष तीन सेठ तो दानके व्यापारी मात्र है-दानकी कोई स्पिरिट, भावना और प्रात्मोपकार तथा परोपकारको लिये हुए अनुग्रहदृष्टि उनमे नही पाई जाती और इसलिये उनके दानको वास्तवमे दान कहना ही न चाहिये। सेठ ताराचन्दने तो ब्लैकमार्केट-द्वारा बहुतोको सताकर कमाये हुए उस अन्याय द्रव्यका दान करके उसका बदला भी अपने ऊपर चलनेवाले एक मुकदमेकोटलानेके रूपमे चुका लिया है और मेठ विनोदीरामने बदले में 'रायबहादुर' तथा 'ऑनरेरी मजिस्ट्रट' के पद प्राप्त कर लिये हैं अत' पारमाथिक दृष्टिसे उनके उस दानका कोई मूल्य नही है। प्रत्युत इसके,

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