Book Title: Yugveer Nibandhavali Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 436
________________ बड़ा और छोटा दानी दानीका बड़ा-छोटापन निर्भर नही है तब समान द्रव्यके दानी परस्परमें समान और एक हो दर्जेके होगे ऐसा कोई नियम नहीं हो सकता-वे समान भी हो सकते हैं और असमान भी । इस तरह उनमें भी बड़े-छोटेका भेद समव है और वह भेद तभी स्पष्ट हो सकता है जब कि सारी परिस्थिति सामने हो अर्थात् यह पूरी तौरसे मालूम हो कि दानके समय दातारकी कौटुम्बिक तथा आर्थिक आदि स्थिति कैसी थी, किन भावोकी प्रेरणासे दान किया गया है, किस उद्देश्यको लेकर तथा किस विधि-व्यवस्थाके साथ दिया गया है और जिन्हें लक्ष्य करके दिया गया है वे सब पात्र हैं, कुपात्र है या अपात्र, अथवा उस दानकी कितनी उपयोगिता है। इन सबकी तरतमता पर ही दान तथा उसके फलकी तरमता निर्भर है और उसीके आधार पर किसी प्रशस्त दानको प्रशस्ततर या प्रशस्ततम अथवा छोटा-बड़ा कहा जा सकता है। जिनके दानोका विषय ही एक दूसरेसे मिन्न होता है उनके दानी प्राय समान फलके भोका नही होते और न समान फलके अभोक्ता होनेसे ही उन्हें बडा-छोटा कहा जा सकता है । इस दृष्टिसे उक्त दस-दस हजारके चारो दानियोमेसे किसीके विषयमें भी यह कहना सहज नहीं है कि उनमें कौन बड़ा कौन छोटा दानी है। चारोंके दानका विषय बहुत उपयोगी है और उन सबकी अपने अपने दानविषयमे पूरी दिलचस्पी पाई जाती है।' अध्यापक वीरभद्रजीकी व्याख्या चल ही रही थी, कि इतनेमे घटा बज गया और वे यह कहते हुए उठ खड़े हुए कि-'दान और दानीके बड़े-छोटेपनके विषयमें आज बहुत कुछ विवेचन दूसरी कक्षामें किया जा चुका है उसे तुम मोहनलाल विद्यार्थीसे मालूम कर लेना, उससे रही-सही कचाई दूर होकर तुम्हारा इस विषयका ज्ञान और भी परिपुष्ट हो जायगा और तुम एकान्त-अभिनिवेशके चक्करमें न पड सकोगे।' अध्यापकजीको उठते देखकर सब विद्यार्थी खडे होमये और बडे विनीतमावसे उनका आभार व्यक्त करने लगे,

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