________________
युगवीर-निबन्धावली प्रेमका व्यवहार करना चाहिये और कोई भी काम ऐसा नहीं करना चाहिये जिससे राष्ट्र की एकता मन हो अथवा उसके हितको बाधा पहुँचे । साथ ही, यह भी समझ लेना चाहिये कि ससारमें ऐसा कोई भी मनुष्य नही है जो किसी न किसी रूपमे मूर्तिकी पूजा-उपासना न करता हो-बिना मूर्ति-पूजाके अथवा आदरके साथ मूर्तिको अपनाये बिना किसीका भी काम नहीं चलता। शब्द और अक्षर भी एक प्रकारकी मूर्तिया-पौद्गालक प्राकृतियाँ-हैं,जिनसे हमारे धर्मग्रन्थ निर्मित है और जिनके आगे हम सदा ही सिर झुकाया करते हैं। यह सिर झुकाना, वन्दना करना और आदर-सत्कार रूप प्रवृत्त होना ही 'पूजा' है, पूजाके और कोई सीग नहीं होते।
भडेमे जिस अशोकचक्रकी स्थापना की गई है उसका रहस्य अभी बहुत कुछ गुप्त है । भारतके प्रधान मन्त्री माननीय पाडत जवाहरलालजी नेहरूने उस दिन वर्तमान राष्ट्रीय भाडेका रूप उपस्थित करते और उसे पास कराते हए जो कुछ कहा है वह बहुत कुछ सामान्य, सक्षिप्त तथा रहस्यके गाम्भीर्यको सूचना-मात्र है-- उससे अशोकचक्रको अपनानेका पूरा रहस्य खुलता नहीं है। सम्भव है सरकारकी गोरसे किमी समय उस पर विशेष प्रकाश डाला जाय । जैनकुलोत्पन्न सम्राट अशोक किन सस्कारोमें पले थे कौनसी परिस्थितियां उनके सामने थी, उन्होने किन-किन भावोको लेकर इस चक्रकी रचना की थी,चक्रका कौन-कौन अग क्सि-किस भावका प्रतिनिधित्व करता है-- खासकर उसके आरोकी २४ सख्या किस भावका द्योतन करती है, जैन तीर्थंकरोके 'धर्मचक्र और बुद्ध भगवानके 'धर्मचक्र' के साथ इसका क्या तथा क्तिना सम्बाध है और भारतके भरतादि चक्रवतियो तथा कृष्णादि नारायणोके 'सुदशनचक्र' के साथ इस चक्रका कहां तक सादृश्य है अथवा उसके किसकिर रूपको किस दृष्टिसे इसमें अपनाया गया है, ये सब बाते प्रकट होने के योग्य है।