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युगवीर-निबन्धावली मादि महावीर पर्यन्त २४ जैन तीर्थकर मालूम होते हैं- दूसरोंद्वारा बादको माने गये २४ अवतारोका भी उनमे समावेश है-और परिषिके पास तथा किरणोके मध्यमें जो छोटे-छोटे स्तूपाकार उभार हैं वे इस लोककी आबादी (नगरादि) के प्रतीक जान पड़ते हैं और उनके शिरोभाग जो मध्यवृत्तको कुछ गुलाईको लिये हुए है वे इस बातको सूचित करते हैं कि उन पर मध्यवृत्तका असर पड़ा है और वे उसकी समता तथा ज्योतिके प्रभावसे प्रभावित हैं। साथ ही,विजयचिन्हके रूपमें सुदर्शवचक्रका भी उसमें समावेश हो सकता है और प्रकारान्तरसे सूयकाभी,जो सब पर समानरूपसे अपना प्रकाश डालता है,स्फूर्ति-उत्साह-प्रदायक है और सबकी उन्नति-प्रगतिमे स ायक है। ___ झडेके तीन रंगोमें एक सफेद रंग भी है जो शुद्धिका प्रतीक है। वह यदि प्रात्मशुद्धिका प्रतीक होता तो उसे सर्वोपरि स्थान दिया माता, मध्यमें स्थान दिया जानेसे वह हृदय-शुद्धिका द्योतक बान पडता है-हृदयका स्थान भी शरीरके मध्यमे है। इस सफेद रगके मध्यमे ही अशोकचक्र अथवा विजयचक्रकी स्थापना की गई है, जिसका स्पष्ट आशय यह जान पडता है कि विजय अथवा अशोकका सम्बन्ध चित्तशुद्धिसे है -चित्तशुद्धिके बिना न तो स्थायी विजय मिलती है और न अशोक दशाकी ही प्राप्ति होती है । अस्तु ।
अब मैं इतना और बतला देना चाहता हूँ कि भारतको यह जो कुछ स्वतन्त्रता प्राप्त हुई है वह अभी तक बाह्य शत्रुप्रोसे ही प्राप्त हुई है-अन्तरग (भीतरी) शत्रुओंसे नहीं- और वह भी एक समझौतेके रूपमें । समझौतेके रूपमे इतनी बड़ी स्वतन्त्रताका मिलना इतिहासमें अभूतपूर्व समझा जाता है और उसका प्रधान श्रेय महात्मा गांधीजीके द्वारा राजनीतिमे अहिंसाके प्रवेशको प्राप्त है। इस विषयमें महात्माजीका कहना है कि जनताने अहिंसाको एक नीतिके रूपमें ऊपरी तौर पर अपनाया है उसका इतना फल है। यदि अहिंसाको हृदयसे पूरी तौर पर अपनाया होता तो स्वराज्य कमीका