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युगवीर-निबन्धावली से नेताओका कार्य कठिन तथा जटिल बने । इसके लिये सबसे बड़ा प्रयत्न देशमें धर्मान्धता अथवा मजहबी पागलपनको दूर करके पारस्परिक प्रेम, सद्भाव, विश्वास और सहयोगकी भावनाप्रोको उत्पन्न करनेका है। इसीसे अन्तरङ्ग शत्रुनोंका नाश होकर देशमें शान्ति एव सुव्यवस्थाकी प्रतिष्ठा हो सकेगी और मिली हुई स्वतन्त्रता स्थिर रह सकेगी।
देशमें ऐसी सद्भावनानोको उत्पन्न करने और फैलानेका काम, मेरी रायमें, उन सच्चे साधुओंको अपने हाथमे लेना चाहिये जो सभी सम्प्रदायोमें थोड़े बहुत रूपमें पाये जाते हैं। उनके ऊपर देशका बहुत बडा ऋण है, जिसे उनको इस प्रकारकी सेवामो-द्वारा अब चुकाना चाहिये । इस समय उनकी सेवाओंकी खास जरूरत है, जिससे धर्मान्ध-गुरुओं और बहके हुए स्वार्थपरायण मौलवीमुल्लाओंके ग़लत प्रचारसे व्याप्त हुए विषको देशकी रगोसे निकाला जा सके। उन्हें वर्तमानमें आत्म-साधनाको भी गौरण करके लोकसेवाके मैदानमें उतर आना चाहिये, महात्मा गाधीकी तरह सच्चे दिलसे निर्भय होकर अपेक्षित सेवाकार्योंमें प्रवृत्त हो जाना चाहिये और यह समझ लेना चाहिये कि देशका वातावरण शान्त हुए बिना वे प्रात्म-साधना तो क्या, कोई भी धर्मसाधनका कार्य नहीं कर सकेगे। अपनी सेवाओं द्वारा वे लोकके धर्मसाधनमें तथा
आजकलकी हवामें सच्चे धर्मसे च्युत हुए प्राणियोंको सन्मार्ग दिखानेमें बहुत कुछ सहायक हो सकेगे। और इसलिये उनका इस समय यह सर्वोपरि कर्तव्य है । यदि ऐसे कर्तव्यपरायण सत्साधुमोंकी टोलियोकी टोलियाँ देशमें घूमने लगें तो देशका दूषित वातावरण शीघ्र ही शुद्ध तथा स्वच्छ हो सकता है । आशा है सत्साधु. मोंका ध्यान जरूर इस प्रोर जायगा और वे अपने वर्तमान कर्तव्यको समझकर नेताओंको अपना वास्तविक सहयोग प्रदान करनेमें कोई बात उठा नहीं रक्मे। '