Book Title: Yugveer Nibandhavali Part 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 430
________________ बडा और छोटा दानो ८१३ कर दान दान नही रहता? क्या तुम्हे उन विशेषतारोका ध्यान नहीं है जिनसे दानके फलमे विशेषता--कमी-बेशी-पाती है और जिनके कारण दानका मूल्य कमोबेश हो जाता अथवा छोटा-बड़ा बन जाता है ? और क्या तुम नही समझते हो कि जिस दानका मूल्य बडा-फल बडा--वह दान बडा है, उसका दानी बडा दानी है, और जिस दानका मूल्य कम-फल कम वह दान छोटा है, उसका दानी छोटा दानी है-दानद्रव्यकी मख्या पर ही दानका छोटा-बडापन निर्भर नहीं है ? इन शब्दोके आघातसे विद्यार्थी-हृदयके कुछ कपाट खुल गये, उसकी स्मृति काम करने लगी और वह जरा चमककर कहाँ लगा 'हाँ, तत्त्वार्थसूत्रके सातवे अध्यायमे दानका लक्षण दिया है और उन विशेषतायोका भी उल्लेख किया है जिनके कारण दानके फलमे विशेषता आती है और उस विशेषताकी दृप्टिमे दानमे भेद उत्पन्न होता है अर्थात् किसी दानको उत्तम-मध्यम-जघन्य अथवा बडा-छोटा प्रादि कहा जा सकता है। उसमे बतलाया है कि 'अनुग्रहके लियेस्व-पर-उपकारके वास्ते-जो अपने धनादिकका त्याग किया जाता है उसे 'दान' कहते है और उस दानमे विधि, द्रव्य, दाता तथा पात्रके विशेषसे विशेषता आती है-दानके ढग, दानमे दिये जानेवाले पदार्थ, दातारकी तत्कालीन स्थिति और उसके परिणाम तथा पानेवालेमे गुरासयोगके भेदसे दानके फलमे कमी-वेशी होती है । ऐसी स्थितिमे यह ठीक है कि दानका छोटा-बडापन केवल दानद्रव्यकी सख्या पर निर्भर नही होता, उमके लिये दूसरी कितनी ही बातोको देखनेकी ज़रूरत होती है, जिन्हे ध्यानमे रखने हुए द्रव्यकी अधिकसख्यावाले दानको छोटा और अल्प-सख्यावाले दानको खुशीसे बडा कहा जा सकता है । अत अब आप कृपाकर अपने दोनो दानियोका कुछ विशेष परिचय दीजिये, जिससे उनके छोटे-बडेपनके विषयमे कोई बात ठीक कही जा सके।

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