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महावीरकी तीर्थ- प्रवर्तन - तिथिका महत्व
श्रीवर्द्धमान महावीरकी गर्भ जन्म-तप ( दीक्षा ) -ज्ञान - निर्वारण नामकी पच कल्याणक तिथियाँ खूब प्रसिद्ध हैं - प्राय नित्यकी पूजामें उनका उच्चारण-स्मरण किया जाता है और उन्हें लक्ष्य करके पचकल्याणक - व्रतानुष्ठानमे उपवास भी किये जाते हैं । जन्मतिथि तो 'महावीर जयन्ती' के रूपमे प्राय सर्वत्र उत्सवादि-पूर्वक मनाई जाती है । परन्तु भ० महावीर के उपासकोमें ऐसे बहुत ही कम --नहीके बराबर -- लोग निकलेगे जिन्हे भगवान्की तीर्थ-प्रवर्तन-तिथि अर्थात् वह दिन भी ठीक अवगत हो जिस दिन उन्होने केवलोत्पत्तिके पश्चात् लोक-हितार्थ अपना उपदेश प्रारम्भ किया था और उसके द्वारा धर्म
धर्मकी यथार्थ परिभाषा बतलाकर तथा तत्त्व-तत्त्वका ठीक भेद समझाकर अज्ञानान्धकारमे भूले-भटकते हुए प्राणियोको सन्मार्ग दिखलाया था, उनके वहमो - मिध्याविश्वासो को दूर भगाकर उनकी कुप्रवृत्तियोको सुधारनेका सातिशय प्रयत्न किया था और अन्यायअत्याचारोसे पीडित एव प्राकुलित जनताको सान्त्वना देकर उसके उद्धारका नेतृत्व ग्रहण करते हुए विश्वभरको सुख-शान्तिका सच्चा सन्देश सुनाया था । कृतज्ञता और उपकार स्मरण श्रादिकी दृष्टिसे यदि देखा जाय तो यह तीर्थ- प्रवर्तन तिथि दूसरी जन्मादि तिथियोसे कुछ कम महत्वकी नही है, बल्कि कितने ही अशोमें अधिक महत्व