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समन्तभद्र-विचार-दीपक (२)
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वीतरागकी पूजा क्यों ?
जिसकी पूजा की जाती है वह यदि उस पूजासे प्रसन्न होता है, और प्रसन्नताके फलस्वरूप पूजा करनेवालेका कोई काम बना देता अथवा सुधार देता है तो लोकमे उसकी पूजा सार्थक समझी जाती है । और पूजा से किसीका प्रसन्न होना भी तभी कहा जा सकता है। जब या तो वह उसके बिना प्रसन्न रहता हो, या उससे उसकी प्रसन्नतामे कुछ वृद्धि होती हो अथवा उससे उसको कोई दूसरे प्रकारका लाभ पहुँचता हो, परन्तु वीतरागदेवके विषयमे यह सब कुछ भी नही कहा जा सकता - वे न किसी पर प्रसन्न होते हैं, न प्रसन्न और न किसी प्रकारकी कोई इच्छा ही रखते है, जिसकी पूर्ति पूर्तिपर उनकी प्रसन्नता अप्रसन्नता निर्भर हो । वे सदा ही पूर्ण प्रसन्न रहते हैं - उनकी प्रसन्नतामे किसी भी कारण से कोई कमी या वृद्धि नही हो सकती । और जब पूजा - श्रपूजासे वीतरागदेव की प्रसन्नता या अप्रसन्नताका कोई सम्बन्ध नही - वह उसके द्वारा सभाव्य ही नही - तब यह तो प्रश्न ही पैदा नही होता कि पूजा कैसे की जाय, कब की जाय, किन द्रव्योंसे की जाय, किन मन्त्रोंसे की जाय और उसे कौन करे - कौन न करे ? और न यह शंका ही की जा सकती है कि अविधिसे पूजा करनेपर कोई अनिष्ट घटित हो जायगा अथवा किसी श्रधमन्प्रशोभन अपावन मनुष्य के पूजा कर