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युमवीर-निबन्धाक्लो लिमा, मेरे ऊपर मादू कर दिया ! मुझे पागल बना विश! मब में बेकार हूँ और मुमसे उसके बिना कुछ भी करते-धरते नहीं बनता।' परन्तु उस बेचारी स्त्रीको इसकी कुछ भी खबर नहीकिसी बातका पता तक नही और न उसने उस पुरुषके प्रति बुद्धिपूर्वक कोई कार्य ही किया है--उस पुरुषने ही कही जाते हुए उसे देख लिया है, फिर भी उस स्त्रीके निमित्तको पाकर उस मनुष्यके मात्मा दोषोको उत्तेजना मिली और उसकी यह सब दुर्दशा हुई। इसीसे वह उसका सारा दोष उस स्त्रीकै मत्ये मढ रहा है, जब कि बह उसमें अज्ञातभावसे एक छोटासा निमित्त कारता बनी है, बझ कारखा तो उस मनुष्यका ही प्रात्मदोष था।
(५) एक दुखित और पीडित गरीब मनुष्य एक सतके आश्रयमें चला गया और बडे भक्ति-भावके साथ उस सतकी सेवा-सुश्रषा करने लगा। वह सत ससार-देह-भोगोंसे विरक्त है-वैराग्यसम्पन्न है-किसीसे कुछ बोलता या कहता नही-सदा मौनसे रहता है । उस मनुष्यकी अपूर्व भकिको देखकर पिछले भक्त लोग सब दग रह गये । अपनी भक्तिको उसकी भक्तिके आगे नगण्य गिनने लगे मोर बड़े प्रादर-सत्कारके साथ उस नवागन्तुक भक्तहृदय मनुष्यको अपनेअपने घर भोजन कराने लगे और उसकी दूसरी भी अनेक प्रावश्यकताप्रोकी पूर्ति बडे प्रेमके साथ करने लगे, जिससे वह सुखसे अपना बीवन व्यतीत करने लगा और उसका भक्ति भाव और भी दिन पर दिन बढ़ने लगा। कभी-कभी वह भक्तिमे विल होकर सन्तके बरणोमें गिर पडता और बडे ही कम्मित स्वरमें गिडगिड़ाता हुमा कहने लगता-'हे नाथ | आप ही मुझ दीन-हीनके रक्षक हैं. आप ही,मेरे अन्नदाता है, आपने मुझे बह भोजन दिया है जिससे मेरी जन्म-जन्मान्तरको भूख मिट गई है। आपके चरण शरणमें प्रानेसे ही मैं सुखी बन गया हूँ, आपने मेरे सारे दुस मिटा दिये हैं और मुळे बह दृष्टि प्रदान की है जिससे मैं अपनेको और जगत्को मले