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अनेकान्त-रस-लहरी (२)
बड़ेसे छोटा और छोटेसे बड़ा अध्यापक वीरभद्रने दूसरी कक्षामें पहुंच कर उस कक्षाके विद्याथियोको भी वही नया पाठ पढ़ाना चाहा जिसे वे अभी अभी इससे पूर्वकी एक कक्षामें पढ़ाकर आये थे, परन्तु यहाँ उन्होने पढ़ानेका कुछ दूसरा ही डग अख्तियार किया। वे बोर्ड पर तीन-इचकी लाइन खीचकर एक विद्यार्थीसे बोले-'क्या तुम इस लाइनको छोटी कर सकते हो?
विद्यार्थीने उत्तर दिया-'हाँ, कर सकता हूँ' और वह उस लाइनको इधर-उधरसे कुछ मिटानेकी चेष्टा करने लगा। ___ यह देख कर अध्यापकमहोदयने कहा- 'हमारा यह मतलब नहीं है कि तुम इस लाइनके सिरोंको इधर-उधरसे मिटाकर अथवा इसमें से कोई टुकडा तोडकर इसे छोटी करो । हमारा आशय यह है कि यह लाइन अपने स्वरूपमे ज्योकी त्यो स्थिर रहे, इसे तुम छूमो भी नही और छोटी कर दो। ____ यह सुन कर विद्यार्थी कुछ भौचक-सा रह गया । तब अध्यापकने कहा-'अच्छा, तुम इसे छोटी नहीं कर सकते तो क्या बिना छुए बड़ी कर सकते हो ?'
विद्यार्थीने कहा-'हाँ, कर सकता है, और यह कहकर उसने दो इंचकी एक लाइन उस लाइनके बिल्कुल सीधमे उसके एक