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बुगवीर निवन्धावली नहीं-आपको प्रसन्न करके प्रापकी कृपा सम्पादन करना या उसके हारा पापको कोई लाभ पहुंचाना, यह सब उसका ध्येय ही नहीं है। उसका ध्येय है आपके पुण्य-गुरणोंका स्मरण-भावपूर्वक अनुचिन्तन-, जो हमारे चिसको-चिद्र प प्रात्माको-पापमलोंसे छुडाकर निर्मल एव पवित्र बनाता है, और इस तरह हम उसके द्वारा अपने प्रात्माके विकासकी साधना करते हैं। इसीसे पथके उत्तरार्ष में यह सैद्धातिक घोषणा की गई है कि 'आपके पुण्य-गुरगोका स्मरण हमारे पापमलसे मलिन अात्माको निर्मल करता है'-उसके विकासमें सचमुच सहायक होता है।
यहाँ वीतराग-भगवानके पुण्य-मुणोंके स्मरणसे पापमलसे मलिन आत्माके निर्मल (पवित्र) होनेकी जो बात कही गई है वह बडी ही रहस्यपूर्ण है, और उसमे जैनधर्मके प्रात्मवाद, कर्मवाद, विकासवाद और उपासनावाद-जैसे सिद्धान्तोका बहुत कुछ रहस्य सूक्ष्मरूपमे सनिहित है। इस विषयमे मैंने कितना ही स्पष्टीकरण अपनी 'उपासनातत्त्व' और 'सिद्धिसोपान' जैसी पुस्तकोमे किया है-स्वयम्भूस्तोत्रकी प्रस्तावनाके 'भक्तियोग और स्तुति-प्रार्थनादिरहस्य' नामक प्रकरणसे भी पाठक उसे जान सकते हैं । यहाँ पर मैं सिर्फ इतना ही बतलाना चाहता हूँ कि स्वामी समन्तभद्रने बीतरागदेवके जिन पुण्य-गुणोंके स्मरणकी बात कही है वे अनन्तज्ञान, अनन्तदर्शन, अनन्तसुख और अनन्तवीर्यादि प्रात्माके असाधारण गुरग हैं, जो द्रव्यदृष्टिसे सब प्रात्माप्रोके समान होने पर सबकी समान-सम्पत्ति हैं और सभी भव्यजीव उन्हे प्राप्त कर सकते हैं। जिन पापमलोंने उम गुरणोंको आच्छादित कर रक्खा है वे ज्ञानावरणादि पाठ कम हैं, योगवलसे जिन महात्मामोंने उन कर्ममलोको दध करके प्रात्मनुरषोंका पूर्ण विकास किया है वे ही पूर्ण विकसित सिदात्मा एवं बीतराग कहे जाते हैं-- शेष सब संसारी जीव अविकसित अथवा अल्पविकसितादि शामोमें हैं। पार वे अपनी