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युगवीर-निबन्धावली कर होलिकाग्निमें उनकी आहुति दे देनी चाहिये और फिर स्वच्छ हृदयसे प्रेमपूर्वक एक दूसरेसे मिलना चाहिये। ऐसी होली घर-घर जलाई जा सकती है।
(९) किसीका भी कोई काष्ठ, इधन आदि बिना उसकी इजाबतके चोरीसे या जबरन न लेना चाहिये । इस प्रकारसे ग्रहण किया हुमा पदार्थ होलिकाग्निको दूषित करता है।
(१०) इस पर्वकी आडमे किसीको भी अपनी पुरानी दुश्मनी निकालने या बदला लेनेकी भावनासे अथवा किसीका अनिष्ट करनेकी दृष्टिसे कोई काम न करना चाहिये । ऐसे सब काम द्वेष-मूलक कार्यों में शामिल हैं, जो पर्वकी पवित्रताको नष्ट करते हैं ।