________________
होलीमालोझर और उसका सुधार ३४॥ काने बाहिय । ऐसी कोषित होनी चाहिये कि हम अपने काम तय चेष्टामो दूसरोंको कितना प्रसन्न, प्रमुदित पयवाभादित कर सकते हैं।
(२) ऐसे किसी भी पदार्थका रमादिके रूममें प्रयोग न करना चाहिये जो दूसरोंके स्वास्थ्य में बाधक हो अथवा मारी-अचिका विषय हो, जैसे नालियोका बोडा-कीचड, गन्दा पानी, गोबर, तारकोल, वानिश रोगन, स्याही सवा दूसरे भद्दे पोर पक्के रण ।
(३) रगोमें प्रायः केसरिया, गुलाबी, टेसू जैसे हल्के सुन्दर तथा कच्चे रंगोका और गुलास, मबीर तथा रोली-जैसे कोमल पवाचौका प्रयोग होना चाहिये।
(४) किसी अपरिचित व्यक्ति या ऐसे व्यक्ति पर जो होलीके आपके पानदमे शरीक होना नही चाहता-साफ इनकार कर रहा है-जबरन रंग डालना या मलना न चाहिये, खासकर ऐसे पैदल या कि सवारी पर जाते हुए यात्रियो पर जो पहलेसे होलीके रगमें रगे हुए भी नहो।
(५) गालिया बकना, अश्लील गीत गाना, भद्दे मजाक और असभ्यतामूलक कुचेष्टाएँ न होनी चाहिये, जो सब अशुभ रागकी घोतक हैं । उनके स्थान पर अच्छे शिक्षाप्रद तथा मागलिक लोकगीतोको अपनाना चाहिये।
(६) सबको इस दिन जाति-पाति, ऊँच-नीच और स्पृश्य-अस्पृश्यके असभेदभावको भुलाकर बिना किसी सकोचके परस्परमे मिल बैठकर पर्वके समता कार्यको सम्पन्न करना चाहिए।
(७) होलीके दिन मदिरा तथा दूसरे ऐसे मादक पदार्थोंका सेवन न किया जाना चाहिये जिससे हम अपना विवेक खो बैठे।
(८) होलिका दहनको दोष-दहनका रूप दिया जाना चाहिये। वर्षभरके अपने दोषो, वेर-विरोधों तथा बुराइयोको स्थिर न रखकर उन्हें संकल्पपूर्वक त्याग देना अथवा कागज-काष्ठादि पर लिख