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युगवीर - निबन्धावली
संवत्से २६ वर्ष ३ || महीने पूर्व हमारे इस कृषि प्रधान देश में सावनीNidhi विभागरूप फसली साल प्रवृत्त था । तब श्राजकल फसली सालकी जो सख्या बतलाई जाती और प्रवृत्ति में आ रही है वह किस आधार पर अवलम्बित है और कहाँ तक ठीक है, यह अवश्य ही एक विचारणीय विषय है, जिस पर विद्वानोको खासतौर से अनुसधान पूर्वक प्रकाश डालना चाहिये । अस्तु ।
धवल सिद्धान्तमे एक दूसरी गाथा और दी है, जिससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि उक्त श्रावरण कृष्ण प्रतिपदाका वह पूर्वाहका समय सूर्योदयका समय था, अभिजित नक्षत्रका उस समय योग हुना ही था और रुद्र नामका प्रथम मुहुर्त वर्त रहा था, उसी समयका यह सब योग जो युगकी प्रादि-युगारम्भका माना जाता है वही वीरशासनकी उत्पत्तिका समझना चाहिये । वह गाथा इस प्रकार हैसावबहुलपविरुद्दमुहुत्ते सुहोदए रबिणो ।
अभिजिस्स पढमजोए तत्थ जुगादो मुणेयब्बो ||
इस तरह श्रावण कृष्ण प्रतिपदाकी तिथि महावीरकी तीर्थप्रवर्तन- तिथि, युगारभ-तिथि अथवा शासन-तिथि है और इससे उसका महत्व स्वत. स्पष्ट है । उस दिन महावीर - शासन के प्रेमियोको खास तौर पर उक्त शासनकी महत्ताका विचार कर उसके अनुसार अपने प्रचार-विचारको स्थिर करना चाहिये और लोक्मे महावीरशासनके प्रचारका -- महावीर सन्देशको सर्वत्र फैलाने का -- भरसक उद्योग करना चाहिये अथवा जो लोग शासन प्रचार के कार्य मे लगे हो उन्हें सच्चा सहयोग एव साहाय्य प्रदान करना चाहिये, जिससे वीरशासनका प्रसार होकर लोकमे सुख-शान्ति-मूलक कल्याणकी अभिवृद्धि होवे । श्राशा है सहृदय बन्धुजन मेरी इस छोटीसी सूचना एवं प्रेरणा पर अवश्य ही ध्यान देनेकी कृपा करेंगे ।